(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
‘शोषण’ के बढ़ने लगे, भारी ‘अत्याचार’ |
भारत की ‘धरती’ दबी, सह कर इतने ‘भार’ !!
‘ताक़’ में हमने रख
दिया, है ‘राष्ट्र का स्वत्व’ |
‘सम्विधान’ से अधिक हैं, रखते ‘निजी प्रभुत्व’ ||
लम्पट, लोभी लालची, ‘अगुआ’ हुये अनेक |
जला-जला ‘सिद्धान्त’ ये, ‘रोटी’ लेते सेंक ||
‘अमन-चैन’ के ‘शीश’ पर, कितने किये ‘प्रहार’ !
‘भारत की धरती दबी, सह कर ‘इतने भार’ !!१!!
‘अनाचार’ का ‘हथौड़ा’, ‘हठधर्मी के ‘हाथ’ |
‘सदाचार’ का तोडते, ‘निर्दयता’ से ‘माथ’ ||
‘नीति-न्याय’ के ‘शीश’ पर, ठोंक रहे ‘गुलमेख’ |
‘प्रजातंत्र’ घायल किया, और रहे हम देख !!
‘दया-मनुजता’-धर्म को दिया, हमीं ने है मार |
भारत की ‘धरती’ दबी, सह कर इतने ‘भार’ !!२!!
‘दहेज’ को रोको तथा, रोको ‘वैरिन घूस’ !
इन दोनों ने ‘प्रेम-रस’, सभी लिया है चूस ||
दोनों ‘प्रेत-पिशाचिनी’, जैसे क्रूर-कराल !
‘मानवता’ को खा गये,चल कर कुटिल ‘कुचाल’ !!
कौन बचाए अब हमें, सुन कर ‘करुण पुकार’ ?
‘भारत की धरती दबी, सह कर इतने ‘भार’ !!३!!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं