(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
शोषण के हाथों थमा, पैना अत्याचार !
‘मानवता’ के ‘बदन’ पर, कितने हुये ‘प्रहार’ !!
चुरा चुरा कर बेचते, ‘कुदरत’ के परिधान’ |
‘चीर’ धरा का हरण कर, बने निठुर ‘इंसान’ ||
‘घूस-कमीशन’-‘दानवों’, की आयी है ‘बाढ़’ |
‘प्रगति-हिरनियों’ को चबा, रही इन्हीं की ‘दाढ’ ||
‘लाभ-लोभ’ ने ‘लूट’ का, किया गरम ‘बाज़ार’ |
‘मानवता’ के ‘बदन’ पर, कितने हुये ‘प्रहार’ !!१!!
‘ट्यूशन’ ने ‘तालीम’ में, जमा लिये हैं ‘पाँव’ |
‘गुरू-शिष्य का प्रेम’ है, चढ़ा इसी के दाँव ||
चुरा चुरा कर बेचते, हैं ‘सरकारी माल’ |
‘चोरों के दुश्चक्र’ से, हुआ देश ‘कंगाल’ ||
‘सेवक’ सेवा’-रत कई, करते हैं व्यापार |
‘मानवता’ के ‘बदन’ पर, कितने हुये ‘प्रहार’ !!२!!
रुके दफ्तरों में अगर, ‘कुलटा पापिन घूस’ |
‘ट्यूशन’ भी रुक जायेगी, रक्त रहे ये चूस ||
सबसे पहले रोकिये, ‘पापी कुटिल दहेज़’ |
जिस की ‘मार’ से ‘देश का सीना’ है लवरेज़ ||
बिना एक के दूसरे,
का रुकना बेकार |
‘मानवता’ के ‘बदन’ पर, कितने हुये ‘प्रहार’ !!३!!
दुखती रग पर हाथ रख दिया आपने !
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