(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
देखो ‘भारत की धरा’, रोई हो लाचार !
‘नाश’ रोक लो, बन्द कर, ‘शोषण’ का ‘बाज़ार’ !!
मोटे ‘अजगर’ की तरह, बैठे ‘माँ के लाल’ |
‘मेहनत’ के ‘धन’ से अधिक, छकें ‘मुफ़्त का माल’ ||
‘छोटे नेता’ बड़ों से,
सीखें ‘चाल-फरेब’ |
‘भोली जनता’ ठग रहे, भरते ‘अपनी जेब’ ||
‘राष्ट्र वाद’ की ‘बीन’ के, ‘व्शिथिल’ हुये हैं ‘तार’ |
‘नाश’ रोक लो, बन्द कर, ‘शोषण’ का ‘बाज़ार’ !!१!!
बिना ‘सिफारिश-घूस’ के, कठिन हुये ‘व्यवसाय’ |
‘वेतन’ से ‘भारी’ बहुत, ‘नम्बर दो’ की ‘आय’ !!
‘लकड़ी-पत्थर-रेत’ को, खाकर हुये ‘निहाल’ !
‘लोहा-डीज़ल-शकर’ सब, लिये ‘पेट’ में डाल !!
‘मीठा-कड़वा-किरकिरा’, खा कर ली न ‘डकार’ !
‘नाश’ रोक लो, बन्द कर, ‘शोषण’ का ’बाज़ार’ !!२!!
‘शक्ति-उपासक’ हैं कई, ज्यों ‘उपवन’ में शूल’ |
धमका कर ‘चन्दा’ तथा, ‘हफ़्ता’ रहे वसूल ||
टैक्स चुराने में
निपुण, ‘शातिर’ कई ‘कुबेर’ !
‘लक्ष्मी-वाहन’ कर रहे, हैं कितना ‘अन्धेर’ !!
केवल ‘धन’ ही पूजते,
भूल ‘ज्ञान का सार’ |
‘नाश’ रोक लो बन्द कर, ‘शोषण’ का ‘बाज़ार’ !!३!!
एक सशक्त प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर है हिंदी दिवस पर अप्रतिम दोहांजलि।