Blogger द्वारा संचालित.

Followers

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (6) मौसम का उत्पात (ख) रूठ गया ‘मधुमास’

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
    


पवनचली डालीहिली, र गये पीले पात’ |

सिहर उठे ‘आतंक’ से, सुभग छबीले ‘पात’ ||

पुरखों ने बोये जहाँ, ‘मीठे मीठे आम’ |

उन्हें काट कर बो रहे, हम बबूल उद्दाम’ ||

पोर पोर में चुभ रहे, ‘अन्तर्मनको साल |

‘पीडाओंके उग रहे, जहाँ तहाँ कंटाल’ ||

किस से जा कर हम कहें, ‘अपने मन की बात’ |

सिहर उठे ‘आतंक’ से, सुभग छबीले ‘पात’ ||||


बीते युगकी बात है, ‘बसन्तका इतिहास |

पतझरआया बागमें, रूठ गया मधुमास’ ||

विकास है ‘सुन्दर’ यथा , ‘नागफनी का फूल’ |

ऊपर ऊपर खुशनुमा, भीतर पैने शूल ||

कोहरेने देखो किया, ‘धूमिल, मलिन प्रभात’ |

सिहर उठे ‘आतंक’ से, सुभग छबीले ‘पात’ ||||


यों तो चारो ओर हैं, महके हुये “प्रसून” |

पर इन के मन में छुपा, चुभता हुआ जुनून’ ||

इस पश्चिमी विकासने, दी है ऐसी चोट |

‘सम्बन्धों’ में चुभ रही, लालच’ भरी ‘कचोट’ ||

मानवतापर हो गया, है निर्मम ‘आघात’ |

सिहर उठे ‘आतंक’ से, सुभग छबीले ‘पात’ |||


|





2 टिप्‍पणियां:

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

मेरे सभी ब्लोग्ज-

प्रसून

साहित्य प्रसून

गज़ल कुञ्ज

ज्वालामुखी

जलजला


  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP