(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
‘लोभ की लपटें’ उठ रहीं, ‘स्वार्थ के अंगार’ !
‘भट्टी’ भ्रष्टाचार’ की, ‘ईंधन’ मलिन विचार !!
‘मल-करकट के ढेर’ में, लगी हुई ज्यों ‘आग’ !
दिशा-दिशा ‘दुर्गन्ध’ है, किधर चलें हम भाग !!
नफ़रत की ‘चिनगारियाँ ’, छिटकीं चारों ओर !
झुलसी सारी ‘प्रीति’ की, बँधी ‘हृदय’ से ‘डोर’ ||
‘धुआँ’ ‘दर्द-दुःख-द्वन्द’ का, उफ़ ! यह अत्याचार !
‘भट्टी-भ्रष्टाचार’ की, ‘ईंधन’ मलिन विचार’ !!१!!
‘धन की तृष्णा’ ‘दानवी’, हाथों ‘पाप-मशाल’ !
‘आग’ लगाने को चली, बन कर आयी ‘काल’ !!
‘प्रेम’-सु-‘नन्दन वन’ जला, ‘सत्’ के ‘मोर-चकोर’ !
जले, जले हैं ‘आचरण’, मचा हर तरफ़ ‘शोर’ !!
झुलसे ‘कोमल भाव’ सब, ‘मानवता-आधार’ !
‘भट्टी’ भ्रष्टाचार की, ‘ईंधन’ मलिन विचार’ !!२!!
मैं बन जाऊँ आज ही, ‘कारूँ’ या कि ‘कुबेर’ !
सोच रहा हर ‘निठल्ला’, रंच लगे मत देर !!
जहाँ मिले जिस हाल में, पा कर बनो ‘बहाल’ !
‘जनता’ या ‘सरकार’ का, लूट ‘मुफ़्त का माल’ ||
मत लौटाओ हड़प लो, सारा ‘नक़द-उधार’ !
‘भट्टी-भ्रष्टाचार’ की,
‘ईंधन’ मलिन विचार !!३!!
हमेशा की तरह सुंदर दोहा गीत ।
जवाब देंहटाएंपढ़-पढ़ कर जी दहल जाता है -आखिर कब तक !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है अर्थ भाव शब्द सौंदर्य सभी एक साथ लिए हुए।
जवाब देंहटाएंधुआँ’ ‘दर्द-दुःख-द्वन्द’ का, उफ़ ! यह अत्याचार !
‘भट्टी-भ्रष्टाचार’ की, ‘ईंधन’ मलिन विचार’ !!१!!
"द्वंद्व" कर लें।