(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
जानें कितनी बार है, बदल चुकी सरकार !
ज्यों के त्यों ‘ज़िन्दा’ अभी, ‘चुभते भ्रष्टाचार !!
‘राजनीति’ के ‘खेल’ में, पनपा है ‘छल’ आज |
जनता ‘चिड़िया’ बन गयी, नेता हैं कुछ ‘बाज’ ||
‘भ्रष्ट तन्त्र’ को दे दिया, ‘प्रजातन्त्र’ का ‘नाम’ |
इस ‘काँटों’ की ‘बाड़’ ने, ‘चुभते’ दिये ‘इनाम’ ||
मिले ‘राज्य’ से बीच में, छिन जाते अधिकार |
ज्यों के त्यों ‘ज़िन्दा’ अभी, ‘चुभते भ्रष्टाचार’ !!१!!
कुछ ‘पैसों’ के लिये हम, बेच रहे ‘ईमान’ !
‘राष्ट्र-भक्ति’ के नाम पर, देते हैं ‘व्याख्यान !!
‘चतुराई’ से भर रहे, अपने घर में ‘कैश’ |
‘जनता के श्रम’ से अरे, लूट रहे वे ‘ऐश’ !!
‘धनवादी सिद्धान्त’ के, हुये कई ‘बीमार’ |
ज्यों के त्यों ‘ज़िन्दा’ अभी, ‘चुभते भ्रष्टाचार’ !!२!!
‘लोभ’ हुआ ‘ख्ब्बीस’ सा, ‘तृष्णा’ निठुर ‘चुड़ैल’ !
दोनों मिल कर खेलते, ‘नाश-कबड्डी-खेल !!
इनसे उपजे ‘कमीशन’-घूस औ धूर्त ‘दहेज़’ !
इन से ‘अच्छे लोग’ भी, करते अब न ‘गुरेज़’ !!
है ‘भारत’’ पर ‘भार’ सा, इनका हर ‘व्यहवार’ !
ज्यों के त्यों ‘ज़िन्दा’ अभी, ‘चुभते भ्रष्टाचार’ !!३!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें