(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार !)
‘अकल्याण’ से दूर हो, हे
माँ ! हर ‘रस-सार’ !
माता ! सारे ‘रस’ बनें,
‘शिव’-गंगा की ‘धार’ !!
माँ ! ‘विभाव’-‘अनुभाव’
हों, या ‘संचारी भाव’ !
या ‘स्थाई भाव’ हो, या ‘व्यभिचारी
भाव’ !!
ये सारे ‘रस-अंग’ माँ, हरते
रहें ‘तनाव’ !
’तट’ तक ‘नदिया-पार’ ज्यों,
करती ‘अच्छी नाव’ ||
‘डुबा’ न पाये किसी को,
‘उलझन’ की ‘मंझधार’ !
माता ! सारे ‘रस’ बनें,
‘शिव’-गंगा की ‘धार’ !!१!!
‘वात्सल्य’ या ‘वीर रस’,
‘रौद्र’ या ‘वीभत्स’ |
या कि ‘भयानक रस’ तनिक, भी
न कहीं हों ‘कुत्स’ !!
‘शान्त’ औ ‘गम्भीर रस’,
रहें समेटे ‘ज्ञान’ !
तथा ‘भक्ति’, इन सभी से, मत
उपजे ‘अभिमान’ !!
‘विकृत वासना’ से बचे,
‘रस-राजा श्रृंगार’ !!
माता ! सारे ‘रस’ बनें,
‘शिव’-गंगा की ‘धार’ !!२!!
‘उच्छृंखल’ मत ‘हास्य’ हो,
करता रहे ‘विनोद’ !
‘स्वस्थ’ ‘भावना’ को रखे, कर ‘आमोद-प्रमोद’ !!
रखे ‘संतुलन’, ‘सम दशा’, हर
‘रस’ की ‘निष्पत्ति’ !
‘असन्तुलन औ ‘विषमता’,से मत
बढ़े ‘विपत्ति’ !!
‘सत्-रज-तम’ तीनों ‘गुणों’,
में मत भरें ‘विकार’ !
माता ! सारे ‘रस’ बनें,
‘शिव’-गंगा की ‘धार’ !!३!!
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंअकल्याण’ से दूर हो, हे माँ ! हर ‘रस-सार’ !
जवाब देंहटाएंमाता ! सारे ‘रस’ बनें, ‘शिव’-गंगा की ‘धार’ !!
sundar bhavyukt prastuti .badhai
सत्-रज-तम’ तीनों ‘गुणों’, में मत भरें ‘विकार’ !
जवाब देंहटाएंमाता ! सारे ‘रस’ बनें, ‘शिव’-गंगा की ‘धार’ !!३!!
...वाह...बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति...
बुरा मत माैनना मित्र ।
जवाब देंहटाएंमैं झूठी तारीफ नहीं करता हूँ।
दोहा गीत बहुत सुन्दर रचा है आपने।
मगर दोहों में दोष स्पष्ट झलक रहे हैं।