आकर्षित सब को करे,
‘काव्य-कला-सौजन्य’ !
हे माँ ! मुझ पर कृपा कर,
करो मुझे तुम धन्य !!
‘शब्द-अर्थ’ से सजें माँ,
कविताओं के अंग !
‘अलंकार’ सब तरह के, भरते
रहें ‘उमंग’ !!
लदे न इतना भी अधिक,
‘अलंकार’ का ‘बोझ’ !
जिससे दब जाये अधिक,
‘कविताओं’ का ‘ओज’ !!
और इस तरह ‘काव्य’ हो,
रोचकता-सम्पन्न !
हे माँ ! मुझ पर कृपा कर,
करो मुझे तुम धन्य !!१!!
माँ ! ‘माधुर्य-प्रसाद’ औ,
‘ओज’-‘तीन गुण’-सिद्ध !
‘परुषा-गौड़ी-कोमला’, ‘तीन
वृत्ति’-समृद्ध ||
और ‘कला’ के साथ में, ‘भाव’
रहे भरपूर !
तथा ‘’कल्पना’ भी रहे, मत
‘यथार्थ’ से दूर !!
पढेँ, सुनें जो ‘काव्य’ को,
होते रहें प्रसन्न !
हे माँ ! मुझ पर कृपा कर,
करो मुझे तुम धन्य !!२!!
‘रोचकता’ के साथ में, बने
रहें ‘आदर्श’ !
‘विमर्श’ हों इस तरह से,
मिटें न मन के ‘हर्ष’ !!
विधा ‘काव्य-साहित्य’ की,
हो विचार-अनुकूल !
‘नौका-साधन’ विधा है, मुख्य
‘साध्य-नद-कूल’ ||
सभी पढेँ जो ‘काव्य’ को,
हों न कभी भी ‘खिन्न’ !
हे माँ ! मुझ पर कृपा कर,
करो मुझे तुम धन्य !!३!!
बढ़िया है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंआभार-
वाह ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीतादोहावली (गीतदोहावली )
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएं