(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार !)
जीवन ‘करुणा’ के बिना,
‘शुष्क-रेत’ निस्सार |
अत: ‘करुण-रस’ से करो, नम
सारे ‘’व्यवहार’ !!
लुढ़के ‘रस’ की ‘गागरी’, करे ‘धरातल’ स्वच्छ !
ऐसे ‘नयनों’ से झरें,
‘अश्रु’ भिगो दें ‘वक्ष’ !!
करुण सदा ‘पर शोक’ में,
रहें बसे ‘रस-स्रोत’ !
अम्ब ! ‘वेदना-वेद’ बन,
जाये ‘तम’ में ‘ज्योति’ !!
‘पर-पीड़ा’ में लोग सब, रहें
सदा तैयार !
अत: ’करुण-रस’ से करो, नम
सारे ‘’व्यवहार’ !!१!!
‘दया-भाव’ हो ह्रदय में, सब
के लिए समान !
वैर तजें सब के दुखों,का कर
सकें ‘निदान’ !!
‘सागर’ सी ‘गम्भीरता’, मय
हो ‘रस गम्भीर’ !
जिसमें ‘गोते’ लगाकर,
‘ज्ञानी’ बनें ‘सुधीर’ !!
‘दम्भ-क्रूरता’ रोग हैं,
इनका हो ‘उपचार’ |
अत: ’करुण-रस’ से करो, नम
सारे ‘’व्यवहार’ !!२!!
‘भक्ति-भावना’ से करे, हर
जन ‘आत्मखोज’ !
‘आत्मा’ में ‘परमात्मा’, सा
‘जागृत’ हो ‘ओज’ !!
‘कण-कण’ में ही व्याप्त है,
रमता अपना ‘राम’ |
‘ज्ञान-प्रेम’ ‘गति-शील’
हों, लगे न कभी ‘विराम’ !!
‘पर सेवा’ हित ‘भक्त जन’,
सब पर रहें ‘उदार’ !
अत: ’करुण-रस’ से करो, नम
सारे ‘’व्यवहार’ !!३!!
वाह ।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद ।
पर सेवा’ हित ‘भक्त जन’, सब पर रहें ‘उदार’ !
जवाब देंहटाएंअत: ’करुण-रस’ से करो, नम सारे ‘’व्यवहार’ !!३!!
very nice .thanks