(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

जहाँ सदा ही रहा है, ‘आदर्शों’का ‘राज’ |
‘प्रबुद्ध भारत’ का हुआ, कैसा आज ‘समाज’ !!
इस भारत में कभी थे, सीधे-सच्चे’ लोग |
बदले –बदले आज कल, है अजीब ‘संयोग’ ||
‘छोटी मछली’ को यहाँ, खाता ‘भारी मच्छ’ |
‘अभिमानी’ ‘सामान्य-जन’, को कहते हैं ‘तुच्छ’ ||
हमें दिखाई दे रहा, यद्यपि सुखद ‘स्वराज’ |
‘प्रबुद्ध भारत’ का हुआ, कैसा आज ‘समाज’ !!१!!
रचते यहाँ ‘दबंग’ कुछ, छुप कर ‘शासन-तन्त्र’ |
‘काँटे’ भरने को ‘चुभन’, कुछ हो गये ’स्वतंत्र’ ||
‘धन-बल’-‘जन-बल’-‘राज-बल’, की ‘मनमानी’ खूब |
‘भाषण’ सुन कर लोग सब, गए बहुत अब ऊब ||
माना है ‘गणतंत्र’ के ‘झंडे’ गाड़े आज |
‘अति लालच‘-‘अति क्रोध’ या, अतिशय ‘तृष्णा-भूख’ |
की ‘भट्टी’ में ‘तच’, गयी, है ‘मानवता’ सूख ||
कुछ ‘पिशाच’ दानव कई, करें ‘घिनौनी खोज’ |
‘असमय’ में कुछ ‘बिजलियाँ’, गिरती हैं हर रोज ||
‘प्रसून” कभी समाज पर, गिरे न इसकी
‘गाज’ |
‘प्रबुद्ध भारत’ का हुआ, कैसा आज ‘समाज’ !!३!!