(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
जहाँ सदा ही रहा है, ‘आदर्शों’का ‘राज’ |
‘प्रबुद्ध भारत’ का हुआ, कैसा आज ‘समाज’ !!
इस भारत में कभी थे, सीधे-सच्चे’ लोग |
बदले –बदले आज कल, है अजीब ‘संयोग’ ||
‘छोटी मछली’ को यहाँ, खाता ‘भारी मच्छ’ |
‘अभिमानी’ ‘सामान्य-जन’, को कहते हैं ‘तुच्छ’ ||
हमें दिखाई दे रहा, यद्यपि सुखद ‘स्वराज’ |
‘प्रबुद्ध भारत’ का हुआ, कैसा आज ‘समाज’ !!१!!
रचते यहाँ ‘दबंग’ कुछ, छुप कर ‘शासन-तन्त्र’ |
‘काँटे’ भरने को ‘चुभन’, कुछ हो गये ’स्वतंत्र’ ||
‘धन-बल’-‘जन-बल’-‘राज-बल’, की ‘मनमानी’ खूब |
‘भाषण’ सुन कर लोग सब, गए बहुत अब ऊब ||
माना है ‘गणतंत्र’ के ‘झंडे’ गाड़े आज |
‘अति लालच‘-‘अति क्रोध’ या, अतिशय ‘तृष्णा-भूख’ |
की ‘भट्टी’ में ‘तच’, गयी, है ‘मानवता’ सूख ||
कुछ ‘पिशाच’ दानव कई, करें ‘घिनौनी खोज’ |
‘असमय’ में कुछ ‘बिजलियाँ’, गिरती हैं हर रोज ||
‘प्रसून” कभी समाज पर, गिरे न इसकी
‘गाज’ |
‘प्रबुद्ध भारत’ का हुआ, कैसा आज ‘समाज’ !!३!!
सुंदर सटीक दोहा गीत ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सटीक दोहा गीत
जवाब देंहटाएंकर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसमाज ऐसा ही होगा अगर जनता जागृत ना होगी। फ्रतिकार करना होगा जनता को।
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