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गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

नयी करवट (दोहा-ग़ज़लों पर एक काव्य ) (५)कागज़ की नाव (ग)अजगर

विकास के इस दौर में यही अजब गजब की बात है कि दूसरे के हित- चिन्तन पर ध्यान  ही नहीं', पेट भरा हो तो भी खुद को मिलता रहे बस !
  (सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
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नहीं कमाते जो कभी, कर के कुछ ‘उद्योग’ |
बिना परिश्रम चख रहे, मीठे ‘मोहन भोग’ ||
एक आदमी दबा कर बैठा है दस ‘काम’ |
और काम को तरसते, फिरते हैं कुछ लोग ||



‘यह’ मिल जाये,औए ‘वह’, भी लग जाये हाथ |
‘हड़प-नीति’ औ ‘हविश’ का, इन्हें अजब है ‘रोग’ ||
कभी ‘धर्म’ में तो कभी, ‘राज-नीति’ में पैठ |
ये ‘नौटंकीबाज़’ कुछ, करने लगते ‘योग’ ||


एक नाम इनका सुनो, है ‘धन का शैतान’ |
सारी जनता से जुड़ा, है इनका ,संयोग’ ||
“प्रसून” इनके ‘बाग’ के, नकली, नकली ‘गन्ध’ |
‘इन्द्रासन’ पर नज़र है, ओढ़े कृत्रिम ‘जोग’ ||

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 मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर 'घनाक्षरी-वाटिका' पंचम कुञ्ज (गीता-गुण-गान) में आप का स्वागत है !   






























4 टिप्‍पणियां:

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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