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बिकता ‘हरि का नाम’ है, जा कर ले लो मोल !
ज़ोर ज़ोर से बज रहे, बड़े ‘धर्म के ढोल’ ||
‘पिया’ की ‘मस्ती’ है नहीं, करते नकली कैफ़ |
इनके ‘आस्था-चादरों’, में हैं कितने ‘झोल’ !!
फ़िल्मी धुन में रँगे हैं, मन पे करते ‘चोट’ |
कब्बाली या कीर्तन, के ‘आकर्षक बोल’ ||
‘रूप-सुधा’ को तक रहे, ‘काम-वासना-दास’ |
कैसे इन से ‘योग’ हो, ये ‘ढंग’ रहे टटोल ||
इनकी सारी असलियत, सब जायेंगे जान |
मियाँ एक दिन खुलेगी, सब की ऐसी ‘पोल’ ||
भैया डंडा ठोक कर, कहते आज “प्रसून” |
सच क्या है, क्या झूठ है, इसको ढंग से तोल !!
शब्द-सहयोग -
कैफ़=रूहानियत की मस्ती | झोल=सिकुड़नें
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सटीक !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
सुंदर !
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