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सोमवार, 16 दिसंबर 2013

नयी करवट (दोहा-ग़ज़लों पर एक काव्य ) (५)कागज़ की नाव (ख)सियासी सियार |


(सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार)

(ख)सियासी सियार
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राजनीति के कुछ चतुर, धूर्त ‘कुटिल सियार’ |
ये मतलब के सगे हैं, नहीं किसी के ‘यार’ ||
हैं मानो ‘चलचित्र’ के, ’नाटकीय सम्बन्ध’ |
नकली इनके हैं सभी, आपस के व्यवहार ||
अथिर ,वासना-पूर्त्ति हित, रखते ‘तन’ से मोह |
‘मन के सागर’ में उठा, क्षणिक ‘प्रेम का ज्वार’ ||


‘हथकण्डे’ रच कर कई, अर्जित करते ‘वित्त’ |
इनके पास अकूत धन, जिसका का कहीं न पार ||
‘वाणी’ मीठी ‘शहद’ सी, बोलें दे ‘रस’ घोल |
पर ‘कटुता’ घोलते, जब करते ‘व्यवहार’ ||
“प्रसून” ‘विष की बेलि’ के, जिनकी ‘मधुर सुगन्ध’ |
सूँघे इनको जो वही, हो जाये ‘बीमार’ ||

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 मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर 'घनाक्षरी-वाटिका' पंचम कुञ्ज (गीता-गुण-गान) में आप का स्वागत है !   




3 टिप्‍पणियां:

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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