विकास के इस दौर में यही अजब गजब की बात है कि दूसरे के हित- चिन्तन पर ध्यान ही नहीं', पेट भरा हो तो भी खुद को मिलता रहे बस !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
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एक नाम इनका सुनो, है ‘धन का शैतान’ |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
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नहीं कमाते जो कभी, कर के कुछ
‘उद्योग’ |
बिना परिश्रम चख रहे, मीठे ‘मोहन भोग’
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एक आदमी दबा कर बैठा है दस ‘काम’ |
और काम को तरसते, फिरते हैं कुछ लोग
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‘यह’ मिल जाये,औए ‘वह’, भी लग जाये
हाथ |
‘हड़प-नीति’ औ ‘हविश’ का, इन्हें अजब
है ‘रोग’ ||
कभी ‘धर्म’ में तो कभी, ‘राज-नीति’
में पैठ |
ये ‘नौटंकीबाज़’ कुछ, करने लगते ‘योग’
||
सारी जनता से जुड़ा, है इनका ,संयोग’
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“प्रसून” इनके ‘बाग’ के, नकली, नकली
‘गन्ध’ |
‘इन्द्रासन’ पर नज़र है, ओढ़े कृत्रिम
‘जोग’ ||
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badhiya hai bhai ji-
जवाब देंहटाएंaabhaar-
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंआप चित्र बड़े गज़ब के ढूंड कर लाते है तदनुसार आपका लेखन -अति उत्तम
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
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