(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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रहने को मिलता नहीं, ढूँढे कहीं मुकाम |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम ||
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इससे महँगाई बढ़ी, गरम हुये ‘बाज़ार’ |
‘अर्थ-तन्त्र’ के सिन्धु में, आया मानो ज्वार ||
बढ़ी ‘भुखमरी’ बेतरह, पनपे अनेक रोग |
महँगी हुईं दवाइयाँ, व्याकुल कितने लोग !!
घर में पड़े मरीज़ हैं, नहीं जेब में दाम |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम !!१!!
‘नदियाँ संयम की’ रहीं, अपने तट को काट |
तितर-बितर सा हो रहा, है ‘जल’ बाराबाट ||
‘जन-संख्या की नदी’ में, आया विकट उफ़ान |
इस अनचाही बाढ़ से, विनशे ‘सुख-उद्यान’ ||
दुखद लबालव छलकता, यह ‘शरबत का जाम’ |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम !!२!!
आयु से पहले मिटे, खिलते हुये “प्रसून” |
पता नहीं क्या करेगा, ‘रति’ का बढ़ा जूनून ||
‘पंछी’ इतने बढ़ गये, छोटे सारे ‘नीड़’ |
हमें बहुत खलने लगी, है सड़कों की भीड़ ||
जहाँ तहाँ लगने लगे, हैं हर पथ जाम |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम !!३!!
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