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रविवार, 3 नवंबर 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (त)दीवाली के आस पास | (शुभ कामनाओं का गुलदस्ता )

(३)दीपावली
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घोर ‘अमावस-लोक’ में, हो ‘प्रकाश’ का राज | ‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||

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‘व्यवहारों के दीप’ में, भरें ‘प्रेम का तेल’ |
‘बाती सच्ची प्रीति की’, हो आपस में मेल ||
खील-बताशों की तरह, खिले मुखुर हो प्यार |
अपना सब को ही लगे, यह सारा संसार ||
बुरी प्रथा अब जुवे की, त्यागे अखिल समाज |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||१||

 
‘लक्ष्मी’ सारी नारियाँ, बच्चे सभी ‘गणेश’ |
जिस में हो शालीनता,पहनें ऐसा वेश ||
‘सरस्वती’ मन में जगे, उपजें ‘मीठे राग’ |
जलें ‘स्नेह के दीप’ पर,बुझे ‘द्वेष की आग’ ||
गिरे किसी के भाग्य पर, कहीं न ‘दुःख की गाज |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||२||


घर-घर बजें वधाइयाँ, धूम, धडाका, शोर |
खुशियों की सौगात दे, सब को कल का भोर ||
हो वर्द्धन ‘गौ-वंश’ का, ‘गोवर्द्धन’ को पूज |
भाई- बहिन के भेद को, मेटे ‘भय्या-दूज’ ||
‘महँगाई’ को मारने हो बुलन्द ‘आवाज़’ |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||३||

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2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना !
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
    नई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर दोहा गीत।
    --
    दीपावली के साथ अन्नकूट (गोवर्धन पूजा) की भी हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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