(३)दीपावली
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घोर ‘अमावस-लोक’ में, हो ‘प्रकाश’ का राज | ‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में
आज ||
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‘व्यवहारों के दीप’ में, भरें ‘प्रेम
का तेल’ |
‘बाती सच्ची प्रीति की’, हो आपस
में मेल ||
खील-बताशों की तरह, खिले मुखुर हो
प्यार |
अपना सब को ही लगे, यह सारा संसार
||
बुरी प्रथा अब जुवे की, त्यागे अखिल समाज |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||१||
‘लक्ष्मी’ सारी नारियाँ, बच्चे सभी ‘गणेश’ |
जिस में हो शालीनता,पहनें ऐसा वेश ||
‘सरस्वती’ मन में जगे, उपजें ‘मीठे राग’ |
जलें ‘स्नेह के दीप’ पर,बुझे ‘द्वेष की आग’ ||
गिरे किसी के भाग्य पर, कहीं न ‘दुःख की गाज |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||२||
घर-घर बजें वधाइयाँ, धूम, धडाका,
शोर |
खुशियों की सौगात दे, सब को कल का
भोर ||
हो वर्द्धन ‘गौ-वंश’ का,
‘गोवर्द्धन’ को पूज |
भाई- बहिन के भेद को, मेटे
‘भय्या-दूज’ ||
‘महँगाई’ को मारने हो बुलन्द ‘आवाज़’ |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||३||
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(३)दीपावली
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घोर ‘अमावस-लोक’ में, हो ‘प्रकाश’ का राज | ‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में
आज ||
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‘व्यवहारों के दीप’ में, भरें ‘प्रेम
का तेल’ |
‘बाती सच्ची प्रीति की’, हो आपस
में मेल ||
खील-बताशों की तरह, खिले मुखुर हो
प्यार |
अपना सब को ही लगे, यह सारा संसार
||
बुरी प्रथा अब जुवे की, त्यागे अखिल समाज |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||१||
‘लक्ष्मी’ सारी नारियाँ, बच्चे सभी ‘गणेश’ |
जिस में हो शालीनता,पहनें ऐसा वेश ||
‘सरस्वती’ मन में जगे, उपजें ‘मीठे राग’ |
जलें ‘स्नेह के दीप’ पर,बुझे ‘द्वेष की आग’ ||
गिरे किसी के भाग्य पर, कहीं न ‘दुःख की गाज |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||२||
घर-घर बजें वधाइयाँ, धूम, धडाका,
शोर |
खुशियों की सौगात दे, सब को कल का
भोर ||
हो वर्द्धन ‘गौ-वंश’ का,
‘गोवर्द्धन’ को पूज |
भाई- बहिन के भेद को, मेटे
‘भय्या-दूज’ ||
‘महँगाई’ को मारने हो बुलन्द ‘आवाज़’ |
‘अन्धकार’ मन का मिटे, दीवाली में आज ||३||
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बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
नई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!
बहुत सुन्दर दोहा गीत।
जवाब देंहटाएं--
दीपावली के साथ अन्नकूट (गोवर्धन पूजा) की भी हार्दिक शुभकामनाएँ।