सर्ग के क्रम में प्रकाशित इस दोहा-गीत में 'मदांध
कामी नशेड़ियों द्वारा छल-कपट से शिकार भोली
भाली अबोध बाला-किशोरी या ज़रूरतमंद नारियों
को फांस कर 'यौन-शोषण' का उल्लेख किया
गया है | कभी ये उठावा लेते हैं ,तो कभी धन का चारा डाल कर फांसते है |और कभी बरगालालेते हैं | नारी का घोर अपमान है यह !
कामी नशेड़ियों द्वारा छल-कपट से शिकार भोली
भाली अबोध बाला-किशोरी या ज़रूरतमंद नारियों
को फांस कर 'यौन-शोषण' का उल्लेख किया
गया है | कभी ये उठावा लेते हैं ,तो कभी धन का चारा डाल कर फांसते है |और कभी बरगालालेते हैं | नारी का घोर अपमान है यह !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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नशा, व्यसन के हैं कई, ‘कामी जन’ बीमार |
‘छल-कुजाल’ में फँस गया, है ‘आधा संसार’ ||
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लोलुप-लम्पट
‘काम-पशु’, उच्छ्रंखल ‘दनु-पुत्र’ |
जैसे होने
लगे अब, मनु के कई ‘कुपुत्र’ ||
‘सु-सभ्यता’
यों ‘मानवी’, कर के ‘मटियामेट’ |
‘भोली-भाली नारियों’,
का करते ‘आखेट’ ||
हरते ‘शील’ हैं ‘कुटिलता’, करके ‘कुशल प्रहार’ |
‘छल-कुजाल’ में फँस गया, है ‘आधा संसार’ ||१||
डाल
‘वासना-डोर’ को, रहे
‘रूप-तन’ फांस |
कुछ ‘उलूक-सूत’
जो सदा, केवल ‘धन के दास’ ||
‘कोमलता की लता’
पर, ‘काम की पड़ी ‘चपेट’ |
बेच ‘लाज की
पंखुड़ी’, ‘कलियाँ’ भरतीं
पेट ||
पिता ‘नशेड़ी -
जुवारी’, ‘भूख की दुर्दम
मार’ |
‘छल-कुजाल’ में फँस गया,
है ‘आधा संसार’ ||२||
‘मज़बूरी’ को
भाँप कर, कई ‘वासना-व्याध’ |
भूख
मिटा कर पेट
की, पूरी करते
‘साध’ ||
कुछ
नर ‘छिन्नर कर्म’ के, करके कई
‘कमाल’ |
‘रूप की चिडियाँ’ फांसते,
‘धन का दाना’ डाल ||
‘रस’ पी ‘प्याली’
फ़ेंकते, ठगते हैं
‘श्रृंगार’ |
‘छल-कुजाल’ में फँस गया,
है ‘आधा संसार’ ||३||
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मेरे दूसरे ब्लॉग 'प्रसून' में कल से 'ठहरो मेरी बात सुनो ' शीर्षक से 'सम्बोधन- गीत-काव्य' प्रकाशित करना प्रारम्भ कर दिया है | उसे पढ़ कर
प्रतिक्रया/टिप्पणी/परामर्श दें |
कुछ तन का भूख ,कुछ मन का भूख ने औरत को इस दशा में दाल दिया है -सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंलोलुप-लम्पट ‘काम-पशु’, उच्छ्रंखल ‘दनु-पुत्र’ |
जवाब देंहटाएंजैसे होने लगे अब, मनु के कई ‘कुपुत्र’ ||
समाज के हालात को बयां करती मार्मिक रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरे यथार्थ उदघाटन करने वाले स्वर को प्रोत्साहित करने हेतु धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंअंतस को छूती बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
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