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बुधवार, 8 मई 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ठ) आधा संसार | (नारी उत्पीडन के कारण) (१) वासाना-कारा (|||) काम-पशु


सर्ग के क्रम में प्रकाशित इस दोहा-गीत में 'मदांध 
कामी नशेड़ियों द्वारा छल-कपट से शिकार भोली
भाली अबोध बाला-किशोरी या ज़रूरतमंद नारियों
को फांस कर 'यौन-शोषण' का उल्लेख किया 
गया है | कभी ये उठावा लेते हैं ,तो कभी धन का चारा डाल कर फांसते है |और कभी बरगालालेते हैं | नारी का घोर अपमान है यह !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)


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नशा, व्यसन के हैं कई, ‘कामी जन’ बीमार |
‘छल-कुजाल’ में फँस गया, है ‘आधा संसार’ ||
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लोलुप-लम्पट ‘काम-पशु’, उच्छ्रंखल ‘दनु-पुत्र’ |
जैसे  होने  लगे अब,  मनु के कई ‘कुपुत्र’ ||
‘सु-सभ्यता’ यों ‘मानवी’, कर  के ‘मटियामेट’ |
‘भोली-भाली  नारियों’,  का  करते  ‘आखेट’ ||


हरते ‘शील’ हैं ‘कुटिलता’, करके ‘कुशल प्रहार’ |
‘छल-कुजाल’ में फँस गया, है ‘आधा संसार’ ||१||


डाल  ‘वासना-डोर’  को,  रहे  ‘रूप-तन’  फांस |
कुछ  ‘उलूक-सूत’ जो सदा, केवल ‘धन के दास’ ||
‘कोमलता की लता’  पर,  ‘काम की पड़ी ‘चपेट’ |
बेच  ‘लाज की पंखुड़ी’,  ‘कलियाँ’  भरतीं   पेट ||
पिता  ‘नशेड़ी - जुवारी’,  ‘भूख  की  दुर्दम  मार’ |
‘छल-कुजाल’  में  फँस  गया, है  ‘आधा संसार’ ||२||


‘मज़बूरी’  को  भाँप  कर,   कई  ‘वासना-व्याध’ |
भूख  मिटा  कर  पेट  की,  पूरी  करते  ‘साध’ ||
कुछ  नर  ‘छिन्नर कर्म’ के, करके  कई  ‘कमाल’ |
‘रूप की चिडियाँ’  फांसते,   ‘धन का दाना’  डाल ||
‘रस’   पी  ‘प्याली’  फ़ेंकते,  ठगते   हैं   ‘श्रृंगार’ |
‘छल-कुजाल’  में  फँस  गया, है  ‘आधा संसार’ ||३||


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मेरे दूसरे ब्लॉग 'प्रसून' में कल से 'ठहरो मेरी बात सुनो ' शीर्षक से 'सम्बोधन- गीत-काव्य' प्रकाशित करना प्रारम्भ कर दिया है | उसे पढ़ कर 
प्रतिक्रया/टिप्पणी/परामर्श दें |   

      

7 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ तन का भूख ,कुछ मन का भूख ने औरत को इस दशा में दाल दिया है -सटीक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. दिल को छू लेने वाली रचना....

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. लोलुप-लम्पट ‘काम-पशु’, उच्छ्रंखल ‘दनु-पुत्र’ |
    जैसे होने लगे अब, मनु के कई ‘कुपुत्र’ ||

    समाज के हालात को बयां करती मार्मिक रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. मेरे यथार्थ उदघाटन करने वाले स्वर को प्रोत्साहित करने हेतु धन्यवाद !

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  7. अंतस को छूती बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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