Blogger द्वारा संचालित.

Followers

गुरुवार, 9 मई 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ठ) आधा संसार | (नारी उत्पीडन के कारण) (१) वासाना-कारा (४)यौवन-विक्रय |


लोग कहते है कि नारी -उत्पीडन पर रोक लग गयी है | पर क्या ऐसा वास्तव  में है ? 
अपने यौवन-काल  में मैने देखा-सुना  जो बातें  पहले पर्दे की आड़ में होंती थीं, 
उन बातों का एक बड़ा रूप  बदले परिवेश आज भी दिखाई द३एता है | नारी-भोग पर '
आधुनिक आवरण लग गया है' यह अलग बात है ! मैने पूरा भारत घूम कर देखा है |मुझे 
जहाँ तहां जो गन्ध आई, जो भनक  लगी उसी को मैने तत्काल  विभिन्न कविताओं  के 
रूप में  लिखा  | शराब खानों, जुवाघरों में जो कुछ सुना   गया- फिल्मों धारावाहिकों में 
देखा, मैं ने अपने विभिन्न गीतों में वर्णित  किया |  

(सारे चित्र 'गूगल-खज से साभार)




================  
                                    
                 ‘अति आधुनिक’ समाज है, इतना हुआ ‘सुधार’ |
                               देखो   ‘यौवन’  बेचता,  है   ‘आधा  संसार’ |            
                ====================
       ‘शराब - खाने’, ‘जुवा - घर’, में  कामिनियाँ नग्न ||
सुरा  पिलातीं, ‘रूप-रस’, से कर  सब  को  ‘मग्न’ ||
‘काल-गर्ल’  का  नाम   धर,  होंती  ‘वेश्या-वृत्ति’ |
धन  की  भूखी  ‘अंगना’,  जहाँ  कमाती  ‘वित्त’ ||
और   इस   तरह  हो  रहा,  है ‘तन का व्यापार’ |
                     देखो  ‘यौवन’   बेचता,   है   ‘आधा   संसार’ ||१||


अड्डे   ‘दादा - भाइयों’,  के   हैं   कई   ‘बहाल’ |
जहाँ  ‘रूप - बाज़ार’   के,  होते   कई   ‘दलाल’ ||
लाते  कई  किशोरियाँ,  को  भटका  कर  ‘नीच’  |
करते  ‘कलुषित’  ‘लाज’ को,  ‘पाप-नीर’  से सींच ||
बना   वेश्या   ‘सबल  पशु’,   करके  बलात्कार  |
देखो  ‘यौवन’   बेचता,   है   ‘आधा   संसार’ ||२||


बेबस   कई   किशोरियाँ,  पाने   को  व्यवसाय  |
फंसतीं  इन  के ‘जाल’  में, ‘हो जाये  ‘कुछ आय’ ||



बना   इन्हें   स्मैकिया,  हीरोइन   का   ‘दास’  |
‘पापी’  इन  को फांस  कर, रखते  अपने  पास  ||



दिखा-दिखा  भय  मृत्यु  का,  करते  ‘अत्याचार’ ||
देखो  ‘यौवन’   बेचता,   है   ‘आधा   संसार’ ||३||
===================================
        





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

मेरे सभी ब्लोग्ज-

प्रसून

साहित्य प्रसून

गज़ल कुञ्ज

ज्वालामुखी

जलजला


  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP