लोग कहते है कि नारी -उत्पीडन पर रोक लग गयी है | पर क्या ऐसा वास्तव में है ?
अपने यौवन-काल में मैने देखा-सुना जो बातें पहले पर्दे की आड़ में होंती थीं,
अपने यौवन-काल में मैने देखा-सुना जो बातें पहले पर्दे की आड़ में होंती थीं,
उन बातों का एक बड़ा रूप बदले परिवेश आज भी दिखाई द३एता है | नारी-भोग पर '
आधुनिक आवरण लग गया है' यह अलग बात है ! मैने पूरा भारत घूम कर देखा है |मुझे
जहाँ तहां जो गन्ध आई, जो भनक लगी उसी को मैने तत्काल विभिन्न कविताओं के
रूप में लिखा | शराब खानों, जुवाघरों में जो कुछ सुना गया- फिल्मों धारावाहिकों में
देखा, मैं ने अपने विभिन्न गीतों में वर्णित किया |
आधुनिक आवरण लग गया है' यह अलग बात है ! मैने पूरा भारत घूम कर देखा है |मुझे
जहाँ तहां जो गन्ध आई, जो भनक लगी उसी को मैने तत्काल विभिन्न कविताओं के
रूप में लिखा | शराब खानों, जुवाघरों में जो कुछ सुना गया- फिल्मों धारावाहिकों में
देखा, मैं ने अपने विभिन्न गीतों में वर्णित किया |
(सारे चित्र 'गूगल-खज से साभार)
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‘अति आधुनिक’ समाज है, इतना हुआ ‘सुधार’ |
‘अति आधुनिक’ समाज है, इतना हुआ ‘सुधार’ |
देखो ‘यौवन’ बेचता, है ‘आधा संसार’ |
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‘शराब - खाने’, ‘जुवा - घर’, में कामिनियाँ नग्न ||
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‘शराब - खाने’, ‘जुवा - घर’, में कामिनियाँ नग्न ||
सुरा पिलातीं, ‘रूप-रस’, से कर सब
को ‘मग्न’ ||
‘काल-गर्ल’ का नाम धर, होंती ‘वेश्या-वृत्ति’
|
धन
की भूखी ‘अंगना’,
जहाँ कमाती ‘वित्त’ ||
और इस तरह हो रहा, है
‘तन का व्यापार’ |
देखो ‘यौवन’ बेचता, है ‘आधा संसार’ ||१||
अड्डे ‘दादा - भाइयों’, के हैं कई ‘बहाल’ |
जहाँ ‘रूप - बाज़ार’ के, होते कई ‘दलाल’ ||
लाते कई किशोरियाँ, को भटका कर ‘नीच’ |
करते ‘कलुषित’ ‘लाज’ को, ‘पाप-नीर’ से सींच ||
बना वेश्या ‘सबल पशु’, करके
बलात्कार |
देखो ‘यौवन’ बेचता, है ‘आधा संसार’ ||२||
बेबस कई किशोरियाँ, पाने को
व्यवसाय |
फंसतीं इन के ‘जाल’ में, ‘हो जाये
‘कुछ आय’ ||
बना इन्हें स्मैकिया,
हीरोइन
का ‘दास’ |
‘पापी’ इन को
फांस कर, रखते अपने
पास ||
दिखा-दिखा भय मृत्यु
का, करते ‘अत्याचार’ ||
देखो ‘यौवन’ बेचता, है ‘आधा संसार’ ||३||
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