असम्वैधानिक 'यौन व्यापार' हर गरीब करे यह आवश्यक नहीं | यदि 'धर्म का स्तम्भ' ठीक से थाम लिया तो गरीबी ''फकीरी' है और 'ईश्वर लीन' करेगी जैसा कि सुदामा का उदाहरण है, अन्यथा वह 'पापका कारण | फिर इस 'कलि-काल' में जो कुछ पर्दे की आड़ में हो सकता है, वही उल्लिखित है इस रचना में | हर बात हर किसी के लागू नहीं होंती | 'वुभुक्षितो किम्न करोति पापं' |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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चोरी से बिकता जहाँ, है ‘आधा
संसार’ |
‘वित्त’ कमाने के लिये,लगा
‘रूप-बाज़ार’ ||
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फुटपाथों पर रह
रहे, कई लोग ‘मज़बूर’
|
व्यवसायों के लिये
जो, भटके घर
से दूर ||
उदर भरें वे किस तरह, ‘भूख’ का सह
‘सन्ताप’ |
फँसे बेबसी में करें,
घोर ‘घिनौने पाप’ ||
‘आग’ बुझाने
‘जठार’ की, हैं कितने
लाचार |
‘वित्त’ कमाने के
लिये, लगा ‘रूप - बाज़ार’ ||१||
‘सदाचार’ क्या चीज़ है, इन्हें
नहीं कुछ ज्ञान |
‘घर की इज़्ज़त’ बन गयी, ‘रोटी’
का ‘सामान’ ||
‘अड्डे जुवे
के’ हैं कई, ‘घर’ ‘पापों के धाम’ |
और कई ‘चकले’ बने, हुये
बहुत बदनाम ||
होते ‘रातों’ में जहाँ, खुल
कर ‘यौनाचार’ |
‘वित्त’ कमाने के
लिये, लगा ‘रूप - बाज़ार’ ||२||
‘धर्म’-‘जाति’ से
हीन ये, ‘रोटी’
इनका ‘धर्म’ |
इनकी घरनी- बेटियाँ, बेचा करतीं ‘शर्म’
||
इस बस्ती की नारियाँ, ‘नर-आखेट-प्रवीण’
|
करतीं
होटल क्लबों में, हैं ‘रातें’ ‘रंगीन’ ||
इन को भाती है सदा,
‘नोटों
की बौछार’ |
‘वित्त’ कमाने के
लिये, लगा ‘रूप - बाज़ार’ ||३||
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!