यह रचना 'ग्रन्थ-क्रम' में एक कड़ी है | इस में आधुनिक आडियो वीडियो आदि के द्वारा 'नग्नवाद' के खुले प्रचार से कुप्रभावित शिशु-बाल-किशोर के भोले मन पर पड़ी छाप की और संकेत किया गया है | बच्चे मैने भी पार्कों में गलत तलाश में जुटे देखे हैं |इस रचना का सम्बन्ध वर्तमान 'रेप की घटनाओं' से न हो कर उन बच्चों में आयी 'काम-विकृति' से है | [शब्द-कोष- कनक=धतूरा | अभिराम=सुन्दर | उद्दाम= दमन के अयोग्य |]
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से सभार)
(२) बावली कच्ची कलियाँ |
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‘सु-सभ्यता’ ने रख लिया, ‘असभ्यता’ ने नाम |
‘चम्पा-पादप’ में लगे, ‘कनक के फल’ उद्दाम ||
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‘पंख’ उठा
कर ‘तितलियाँ’, रही हैं ऐसे नाच |
‘मर्यादायें’ टूटतीं,
जैसे ‘कच्चा ‘काँच’ ||
‘भ्रमरों की
गुंजार’ की, जगह है ‘कर्कश राग’ |
‘तोते- मैना’
की जगह, घुसे ‘बाग’ में ‘काग’ ||
‘ललित कलाओं’ की मिटी, ‘सुखद शान्ति’ अभिराम |
‘चम्पा-पादप’ में लगे, ‘कनक के फल’ उद्दाम ||१||
‘कच्ची कलियाँ बावली’,
‘पंखुरियों’ से तंग
|
स्वयं दिखाना
चाहतीं, ‘खुले अधखुले अंग’ ||
वस्त्र पहनने के हुये, अजब निराले ढंग |
देख देख कर
हम हुये, हैं हैरत
से दंग ||
हमें ‘संस्कृति-प्रदूषण’,
का यों
मिला ‘इनाम’ |
‘चम्पा-पादप’ में लगे, ‘कनक के फल’ उद्दाम ||२||
बच्चों के साथ ब्लू फिल्म देहने को जाती मन चली माँ
टी.वी., सी.डी., वीडियो, की घर-घर भरमार
|
नित्य ‘नग्नता’
का
हुआ, जिनसे खूब प्रचार ||
जम कर ‘पी कर’,
कर ‘नशा’, आदत से मजबूर |
देख के फ़िल्में
‘ब्लू’ हुये, ‘शिशु’ ‘बचपन’ से दूर ||
लाते बाप खरीद
कर, ‘कमा कमा’ कर ‘दाम’ |
‘चम्पा-पादप’ में
लगे, ‘कनक के फल’ उद्दाम ||३||
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सांस्कृतिक प्रदुषण को रेंखांकित करती सुन्दर रचना !!
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