ग्रन्थ के क्रम में प्रकाशित इस रचना में 'अतिवासना'(hypolust) या अति यौन-तृष्णा9hyposex) के कारणों- विदेशी आहार जो यहाँ के भौतिक वातावरण के अनुकूल नहीं है, धन का मद और ' नग्नवाद' की कुसंस्कृति का प्रभाव आदि पर प्रकाश डाला गया है | गुंडागीरी आदि सभी विघटनकारी तत्व इन्हीं कारणों से हैं |
बहु कुचार्चित शील हरण और बलात्कार- नारी अपहरान्या अप्राकृतिक यौन- सम्बन्ध इन्हीं कारणों से हो रहे हैं और यौन-अप्पराध भी इन्हीं सब की देंन हैं \प्रत्येक देश का परिधान ९कम या अधिक ) वहाँ के 'भौगोलिक वातावरण पर निर्भर करता है | दूसरे देशॉन में अनुकूल हो भी सकता है और नहीं भी |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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तन के ‘आधे
आवरण’, देखो दिये
उतार !
हुआ
‘शील का आभरण’. ‘रूप का खुला बज़ार’ ||
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इन वस्त्रों को देखिये, क्या
ही अजब कमाल |
‘ह्रदय’ फांसने के लिये,
बने हुये ये ‘जाल
||
शायद कोई भी जगह, तन
की रही न शेष
|
जिसे ढांकने में
सफल, ‘कामिनियों के वेश’
||
‘लाज’ के ‘पोषण’
में रहे, बेचारे ‘लाचार’ |
हुआ ‘शील का आभरण’. ‘रूप का खुला बज़ार’ ||१||
इन
वस्त्रों को देख कर, जागी ‘सोई आग’ |
सोई
सोई ‘काम’ की, गयी ‘कामना’
जाग ||
‘इच्छाओं’ में ‘भोग’
का, भरने लगा
है ‘ताप’ |
इसी
लिये ‘अनुराग’ को,
जला रहा ‘संताप’ ||
और ‘वासना-जलधि’
में, आने लगा है ‘ज्वार’
|
हुआ ‘शील का आभरण’. ‘रूप का खुला बज़ार’ ||२||
वस्त्र ‘सभ्यता’ के
सदा, से हैं
रहे ‘प्रतीक’ |
शायद इन्हें उतार कर,
हम न कर रहे
ठीक ||
तन ढँकने
के लिये हैं, हमने पहने
वस्त्र |
‘काम-युद्ध’ के हित
इन्हें, बना रहे क्यों ‘अस्त्र’
||
क्यों दिखलाते ‘गुप्त
कुछ’, ‘तन के चाप’ उभार |
हुआ ‘शील का आभरण’. ‘रूप का खुला बज़ार’ ||३||
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