ग्रन्थ के इस सर्ग में स्वेच्छा से न्ग्न्वाद को अपनाने की बजाय बलात् पशुता-आचरण -यौन शोषण की और संकेत किया गया है | इस सर्ग में वर्तमान परिस्थितियों की झलक मात्र एक संयोग है |रचना पुरानी है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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मिटी ‘सादगी’ ह्रदय के, उथले हुये विचार |
‘मानवता’ में पनपते, ‘पशुता के ‘व्यवहार’ ||
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मिटी ‘सादगी’ ह्रदय के, उथले हुये विचार |
‘मानवता’ में पनपते, ‘पशुता के ‘व्यवहार’ ||
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‘काम-कला’ का प्रदर्शन, खुले में करते लोग |
‘पशुओं’ जैसे चाहते, ‘मुक्त यौन के भोग‘||
ये ‘मानवता’ के सभी, ‘नियम’ रहे हैं तोड़ |
‘पशु-प्रवृत्ति के प्रदर्शन’, की यों लगी है ‘होड़’ ||
इसीलिये तो ‘ह्रदय’ में, भरने लगे ‘विकार’ |
‘मानवता’ में पनपते, ‘पशुता के व्यवहार’ ||१||
‘प्रेम’ का अर्थ ‘शरीर का, रमण’ नहीं है मात्र |
‘कामी जन’ तन भोगते, बना ‘वासना-पात्र’ ||
‘रति की मदिरा’ पी तथा, तन को ठोकर मार |
जो जन सुख हैं भोगते, वे हैं ‘सभ्य गँवार’ ||
ऐसे लोगों से बना, है ‘जंगल’ संसार |
‘मानवता’ में पनपते, ‘पशुता के व्यवहार’ ||२||
खुले खुले ‘खल’ खेलते, खुल कर ‘रति के खेल’ |
‘इंसानी तहज़ीब’ को, ‘नर्क’ में रहे ढकेल ||
देखो, ‘क्लब’, ‘पार्क’ तथा, ‘समुद्र-तट’ इत्यादि |
में ‘कामी जन’ दिखाकर, ‘उच्छृंखल उन्माद’ ||
करते ‘बन्धन’ तोड़ कर, ‘पशुवत यौनाचार’ |
‘मानवता’ में पनपते, ‘पशुता के व्यवहार’ ||३||
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सामयिक घटनाओं की प्रतिक्रया केवल मेरे ब्लॉग
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सामयिक घटनाओं की प्रतिक्रया केवल मेरे ब्लॉग
'प्रसून' में |
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