मित्रों,आज 'अति व्यस्तता से, 'जाल में फँसे मुक्त हिरण' की भाँति कुछ पल चुरा कर, 'स्वर्ग वासी हास्य-
वीर' जसपाल भट्टी की याद तारो ताज़ा कर रहा हूँ | पारिवारिक बेडियाँ जकड़े थीं, फिर जकड़ लेंगीं | यह भी एक
एक अनिवार्य मधुर पीड़ा है | 'प्यारा बन्धन' है | भट्टी जी की याद में यह छोटी सी 'पुष्पान्जलि'--
(चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
खुशी बाँटने वालों की याद |
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खुद के ग़मों के दौर में जो सब को हँसाते हैं |
गोया, ‘किसी दोज़ख’ में, ‘एक जन्नत’ बसाते हैं
||
‘ऐसे धीर
वीर’, हमें, हमेशा याद आते हैं |
यों तो
अनगिनत लोग ‘जहाँ’ में आते जाते हैं ||
‘वीरानगी‘
में वे,’प्यार की बाँसुरी’ बजाते हैं |
या कि, ‘उजड़े
चमन’ में,महके हुये गुल सजाते हैं ||
‘मन की कुण्ठाओं’ को ‘प्यार’ से गुदगुदाते हैं |
या फिर ‘तपी दोपहरी’ में, ‘बादल’ बरसाते हैं ||
‘रेगिस्तान’ में ‘हँसते “प्रसून”’ कुछ
खिलाते हैं |
‘रीती-मन-गागरों’ में, ‘प्रेम-रस’ भर
जाते हैं ||
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बांटा जीवन भर हँसी, जय भट्टी जसपाल |
जवाब देंहटाएंहंसगुल्ले गढ़ता रहा, नानसेंस सी चाल |
नानसेंस सी चाल, सुबह ले लेता बदला |
जीवन भर की हँसी, बनाता आंसू पगला |
उल्टा -पुल्टा काम, हमेशा तू करता है |
सुबह सुबह इस तरह, कहीं कोई मरता है ||
बहुत सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंबढ़िया गज़लिका...
सादर
अनु