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राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम’ कितने ‘रावण’ मारोगे ?
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‘ दानवता की चोट’ से पीड़ित, ‘मानवता’ तो रोई है |
‘कुम्भकर्ण की नींद’ मिल गयी,’जागृति’ चैन
से सोई है ||
‘आराजकता’ की ‘गति’ को है, ‘गहरी नींद’ में सुला
दिया-
इसे जगाने के प्रयास में,भगवन, तुम
भी हारोगे ||
राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम, कितने ‘रावण’
मारोगे ??१??
औ र ‘चेतना’, ‘नशे’ में डूबी, ’मद-आलस’ में,
‘होश’ नहीं |
‘उचित’ और ‘अनुचित’ पहँचाने, ऐसा
इसमें ‘जोश’ नहीं ||
‘बुद्धि’ में बैठा ‘कालनेमि’
है,बड़ा ‘स्वेच्छाचारी’ है-
‘व्यवस्थाओं के
केश’ हैं उलझे, कैसे इन्हें सँवारोगे ??
राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’
मारोगे ??२??
‘पाप’ की ‘कालिख’ पुती हुई अब, ‘पुण्य’ की ‘हर तस्वीर’ में है |
देखो कितनी ‘दलदल’ पनपी,’सरयू-गंगा-नीर’ में है ||
‘प्रदूषणों की लीला’ ऐसी, इस ‘अमृत’ में ‘विष ही विष’-
सब के सब
‘कीचड़’ में डूबे, किसको किसको तारोगे ??
राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’
मारोगे ??३??
राम! तुम्हारी ‘इस धरती’ में, आज ‘किस गली’
‘धर्म’ बचा ?
देखो तो’, ‘युग-परिवर्तन’ ने, ‘अवध’ में ‘वध’ का
खेल रचा ||
‘धूर्त-नीति’ के
दानव-कुल’ ने, इस को ‘लंका’ बना दिया –
मुझे
बताओ,कब आ कर के,’धर्म की धरा’ सुधारोगे ??
राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’
मारोगे ??४??
‘भक्ति-भाव’ में ‘झूठ के दाग’ हैं,’ध्यान’ में ‘लोभ का भार’ भरा |
‘हर मन के आँगन’ में
कितनी, ‘मैल’ का है ‘अम्बार’ भरा ||
‘निष्ठा की कूचियाँ’ हैं
टूटी, ‘आस्थायें’ सब ‘दुर्बल’ हैं-
‘आँगन-आँगन’
‘दम्भ के काँटे’, कैसे ‘मैल’ बुहारोगे ??
राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’
मारोगे ??५??
‘प्रेम-प्रसून’
में ‘गन्ध’ नहीं है, चढ़े ‘तुम्हारे चरण’ में जो |
‘पुजारियों’
में ‘लोभ’ है व्यापा, आये ‘तुम्हारी शरण’ में जो ||
‘मन-मन्दिर’
में ‘गर्त पतन के’, इन में गिरे ये औंधे मुहँ-
बड़ा
कठिन है इन्हें बचाना, कैसे इन्हें उबारोगे ??
राम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’
मारोगे ??६??
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सब के सब ‘कीचड़’ में डूबे, किसको किसको तारोगे ??
जवाब देंहटाएंराम! ‘हमारी दुनियाँ’ में तुम कितने ‘रावण’ मारोगे ??३??
एक सटीक और सारगर्भित अभिव्यक्ति
'वैमनस्य का रावण'मारें,'स्नेह-वाण' से |
जवाब देंहटाएं'प्रेम के राम' को पूजें,अपने 'हृदय-प्राण'से ||