राष्ट्र-वन्दना
(मेरे भारत देश)
! मेरे भारत देश,स्वर्ग से
सुन्दर और सु रूप हो तुम !
शान्त चित्त तुम, अवढर दानी-आगत के सत्कारक हो !
हृदय विशाल गगन सा व्यापक,चिर गंभीर विचारक हो !!
हृदय विशाल गगन सा व्यापक,चिर गंभीर विचारक हो !!
‘धर्म-भेद’ से रहित ‘स्व्च्छ्मन’,’मानवता’ का रूप हो तुम !!
तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!१!!
सहन शक्ति है असीम शिव सी,जग जाते तो रौद्र महा |
वैरी को भी गले लगाया, उसका अत्याचार सहा ||
पर जब तूमने ‘करवट बदली’,’विप्लव’ हो,’विद्रूप’ हो तुम !
तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!२!!
‘ओज-अनल’ को सहेज रखते,’शान्त ज्वालामुखी’ हो तुम !
तुम न कभी हो सत्ता लोलुप,है तुम में अनंत संयम ||
दैत्य जब आक्रामक होते, ‘त्रिदेव के प्रारूप’ हो तुम !!
तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!३!!
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जवाब देंहटाएंसाहित्य की गहरी सोच-परख हेतु धन्यवाद!
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जवाब देंहटाएंशान्त चित्त तुम, अवढर(औगढ़ ) दानी-आगत के सत्कारक हो !
हृदय विशाल गगन सा व्यापक,चिर गंभीर विचारक हो !!
‘धर्म-भेद’ से रहित ‘स्व्च्छ्मन(स्वच्छमन )’,’मानवता’ का रूप हो तुम !!
तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!१!!बेशक काव्यात्मक सौन्दर्य से भरपूर है रचना लेकिन यह तस्वीर प्राचीन भारत की है इंडिया की भी लिखो ........
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
बहुमूल्य सुझाव हेतु कोटिश:आभार!आपके सुझाव हमें एक बल प्रदान करते हैं | वैसे मेरे अंदर का कवि समन्वयवादी है | 'वह'पुरातन व आधुनिक अच्छाइयों का पक्षधर है किन्तु दोनों कालों की रूढिगत पाखण्ड-आडम्बर-जन्य
हटाएंकुरीतियों,बुराइयों को स्वीकार नहीं करता ! ब्लोगिंग में अभी नवोदित होने के कारण अपत्याषित त्रुटियाँ टंकित हो जाती हैं |
बहुत सुंदर !!
जवाब देंहटाएंजरूरी है गरम जोश कविता
उन सब को सुनाना
जो बेच रहे हैं देश को
खा रहे हैं कोयले का खाना !
नुकीली 'शल्य-क्रिया'वत;नीम से अति यथार्थवाद को सहन करने व उसकी परख हेतु कोटि आबार !
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