सभी सुधी पाठकों,सह लेखकों एवंप्रेरणाप्रद वरिष्ट साहित्यकारों की सेवा में पूर्ण स्वान्तः सुखाय काव्य 'ज्वाला-मुखी'के अपने क्रम में आज 'गुरु-वन्दना 'प्रस्तुत है,जो कि कल, दो रचनाये,पहले से ही काशित किये जाने के कारण नहीं प्रकाशित नहीं कीं गयीं |सो,कल के शिक्षक दिवस में सह्भागितासे वंचित रह जाने का मुझे खेद है !!
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(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से उद्धृत)
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(३)
गुरु-वन्दना
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(हे गुरु जागो)
हे सोये गुरु जागो जागो,
‘ज्ञान-दीप’-उजियार करो
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बन कर वशिष्ठ आओ जग में,सोये ‘राम’ जगाओ तो !
‘सान्दीपन’ ‘कृष्ण कन्हैया’ को सत्पन्थ दिखाओ तो !!
‘राष्ट्र-द्रोह काविप्लव’ देखो,धीरे धीरे पनप रहा !
हे गुरु बन् कर ‘रामदास’ तुम,वीर शिवा तैयार करो !
हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप'-उजियार करो !!१!!
चारों और अकाट्य लग रहा,’कलि-मल’ का है तामस घेरा !
अपारदर्शी,काला, गँदला जिसने है सारा जग घेरा !!
‘पिशाच-दल’ के हाथों मानो,’अन्धकार-घट’ लुढ़क रहा -
‘बोध-ज्योति की प्रतिभा-आभा-असि’से इस पर वार करो !!
हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप'-उजियार करो !!२!!
फिर से ‘नरहरि’ बन् कर आओ,’तुलसी’ को फिर चेताओ !
‘मर्यादा की टूटी माला’ जोड़ जगत को पहनाओ !!
मोह के हाथों ‘चित्र ज्ञान का,’अन्त:-पट’ पर है मिट रहा |
मन में मेल अबोद्ज तत्व की,इसका शीघ्र निखार करो !
हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप उजियार करो !!३!!
‘घृणा,वैर,लालच का लावा’,हर दिल ‘ज्वालामुखी’बना |
इसे शान्त कर,करो शिवो मय, ’त्याग-प्रेम का मन्त्र’ सुना ||
‘विडम्बना के घन’ छाये,हैं,’अकल्याण-रस’ बरस रहा |
बनो पुरो-हित,’मानवता’ के,’हित-जल’ की बौछार करो !
हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप'-उजियार करो !!४!!
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से उद्धृत)
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(३)
गुरु-वन्दना
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(हे गुरु जागो)
हे सोये गुरु जागो जागो,
‘ज्ञान-दीप’-उजियार करो
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बन कर वशिष्ठ आओ जग में,सोये ‘राम’ जगाओ तो !
‘सान्दीपन’ ‘कृष्ण कन्हैया’ को सत्पन्थ दिखाओ तो !!
‘राष्ट्र-द्रोह काविप्लव’ देखो,धीरे धीरे पनप रहा !
हे गुरु बन् कर ‘रामदास’ तुम,वीर शिवा तैयार करो !
हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप'-उजियार करो !!१!!
चारों और अकाट्य लग रहा,’कलि-मल’ का है तामस घेरा !
अपारदर्शी,काला, गँदला जिसने है सारा जग घेरा !!
‘पिशाच-दल’ के हाथों मानो,’अन्धकार-घट’ लुढ़क रहा -
‘बोध-ज्योति की प्रतिभा-आभा-असि’से इस पर वार करो !!
हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप'-उजियार करो !!२!!
फिर से ‘नरहरि’ बन् कर आओ,’तुलसी’ को फिर चेताओ !
‘मर्यादा की टूटी माला’ जोड़ जगत को पहनाओ !!
मोह के हाथों ‘चित्र ज्ञान का,’अन्त:-पट’ पर है मिट रहा |
मन में मेल अबोद्ज तत्व की,इसका शीघ्र निखार करो !
हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप उजियार करो !!३!!
‘घृणा,वैर,लालच का लावा’,हर दिल ‘ज्वालामुखी’बना |
इसे शान्त कर,करो शिवो मय, ’त्याग-प्रेम का मन्त्र’ सुना ||
‘विडम्बना के घन’ छाये,हैं,’अकल्याण-रस’ बरस रहा |
बनो पुरो-हित,’मानवता’ के,’हित-जल’ की बौछार करो !
हे सोये गुरु,जागो जागो, ‘ज्ञान-दीप'-उजियार करो !!४!!
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