आग का खेल
(ख)
(मेरे ब्गलोर-साथियो, मेरे इस काव्य की वन्दना-प्रभाग के बाद की
यह पहली अति यथार्थवादी रचना आज से लगभग २८ वर्ष से पूर्व
के महाविप्लवसे पूर्व मेरे अंतर के 'कवि'की तत्कालीन भविष्य-दृष्टि
के रूप में थी | आज भी भीतर भीतर सुलगती हुयी परिस्थितियाँ
वैसी ही प्रतीत हो रही हैं 'उसे' !! पुरानी अच्छाइयाँ जल रही हैं |
नयी अच्छाइयाँ भी पुरानी रूढियों में दब रही हैं | मैली 'धुआँरी
आग'जीवित है जो नयी 'प्रदूषित ऊर्जा' से गठजोड़ कर के एक
'सुषुप्त सामाजिक ज्वालामुखी के विस्फोट' का 'प्रसव' करने की
तैयारी कर रही है | 'चाँदनी'प्रतीक है-शान्ति,मर्यादा व् भारती संस्कृति' का |)
‘चाँदनी’ जल रही
(प्रतीकों में ‘भीषण परिवर्तन’ की एक झलक)
**********************************
============
*********************************
=================
_
| ‘चाँद के जिस्म’ से ‘आग’ झरने लगी,
| ‘चाँद के जिस्म’ से ‘आग’ झरने लगी,
‘चाँदनी’ ‘जल रही’, ‘यामिनी’ की क़सम |
---------------------------------------------------
‘रजनी गन्धा’ तले कौन है आ गया,हर ‘कली’ हर ‘सुमन’आज भयभीत है |
‘गन्ध का मुहल्ला’ झाँकता है बगल,’कौन किसका कहाँ कितना मन मीत है ||
किस की ‘पापी नज़र’ ‘बाग’ को लग गयी,’कोंपलें जल रहीं’ ‘दामिनी’की क़सम !!
चाँद के जिस्म से आग झरने लगीं,’चाँदनी’ ’’जल रही’ ‘यामिनी’ की क़सम ||१||
तीव्र गति से बढ़ीं ‘कामनाएं कई,’द्वेष का बोझ’ ले ‘चाह के गाँव’ से
लड़खड़ाती हुई उठने-गिरने लगीं,कौन कब बच सका ‘मृत्यु के दाँव’ से !!
और ‘इच्छाओं की सजनि’ की सांस तो,आख़िरी चल रही ‘भामिनी’की क़सम |
चाँद के जिस्म से आग झरने लगीं,’चाँदनी’ ’’जल रही’ ‘यामिनी’ की क़सम ||२||
‘भावना-द्रौपदी’’चीर’ को देख कर,’नग्नता के नगर’में बिलखने लगी |
और ‘अभिव्यक्ति के कुटिल कौरव’ खड़े’ हँस मद्य पी ‘लाज’ लुटने लगी ||
‘क्रान्ति का कृष्ण’ है आँख मूंदे खड़ा’,’रीति’ अब छल रही,’कामिनी की क़सम ||
चाँद के जिस्म से आग झरने लगीं,’चाँदनी’ ’’जल रही’ ‘यामिनी’ की क़सम ||३||
‘छन्द’ बीमार हैं’, ’गीत घायल हुये’, गज़ल बूढ़ी हुई’,’गान आवारा हैं’ -
और संगीत की बाजुएं कट गयी’ ‘हर तरन्नुम’ बना आज नाकारा है |
कौन गाये कहाँ, ‘हर सभा’, ‘वासना-पंक’में गल रही,’रागिनी’ की क़सम |
चाँद के जिस्म से आग झरने लगीं,’चाँदनी’ ’’जल रही’ ‘यामिनी’ की क़सम ||४||
शब्द-कोष -
यामिनी=अँधेरी रात, दामिनी=तड़ित(बादलों की बिजली), भामिनी=पत्नीया प्रेमिका
कामिनी=सुन्दर नारी,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें