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बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

नर्कासुर-वध कीजिये (नरका-चतुर्दशी-पर्व पर विशेष)

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 

रात मिटायें नर्क की, जगा स्वर्ग का भोर !

नर्कासुर-वध कीजिये, सारी शक्ति बटोर !!

लक्ष्मी उलूक पर चढ़े, घर-घर जाए नित्य |

ताकि स्वेच्छाचार से, करे न ओछे कृत्य ||

ब्रह्मा जागें, हरि जगें, जागें शिव हर देश !

त्रिदेव सत्पथ पर चलें, धर मानव का वेश !!

ऐसा पनपे प्रेम-धन, चोर सके ना चोर !

नर्कासुर-वध कीजिये, सारी शक्ति बटोर !!1!!

नरकासुर के लिए चित्र परिणाम

जंगल में भी जंगली, पन मत हो अब रंच !

मानवता से परे अब, सारे रहें प्रपंच !!

बक-कपटी सरे उड़ें, भागें पनपें हंस !

मानवता के ताल में, हो न पाप का अंश !!

नाग पाप के अब चुगें, सरस्वती के मोर !

नर्कासुर-वध कीजिये, सारी शक्ति बटोर !!2!!

अब सोये हैवानियत, सजग रहे इंसान !

करें बुराई दूर हर, लगा-लगा मन-प्राण !! 

नर्क बुराई का हटे, बसे धरा पर स्वर्ग !

रहे प्रेम से यहाँ का, शान्ति से हर वर्ग !!

घृणा को जीतें प्रेम के, वीर लगा कर जोर !


नर्कासुर-वध कीजिये, सारी शक्ति बटोर !!3!!

नरकासुर के लिए चित्र परिणाम

1 टिप्पणी:

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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