(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
रात मिटायें
नर्क की, जगा स्वर्ग का भोर !
नर्कासुर-वध कीजिये, सारी शक्ति बटोर !!
लक्ष्मी उलूक पर चढ़े, घर-घर जाए नित्य |
ताकि स्वेच्छाचार से, करे न ओछे कृत्य ||
ब्रह्मा जागें, हरि जगें, जागें शिव हर देश !
त्रिदेव सत्पथ पर चलें, धर मानव का वेश !!
ऐसा पनपे प्रेम-धन, चोर सके ना चोर !
नर्कासुर-वध कीजिये, सारी शक्ति बटोर !!1!!
जंगल में भी जंगली, पन मत हो अब रंच !
मानवता से परे अब, सारे रहें प्रपंच !!
बक-कपटी सरे उड़ें, भागें पनपें हंस !
मानवता के ताल में, हो न पाप का अंश !!
नाग पाप के अब चुगें, सरस्वती के मोर !
नर्कासुर-वध कीजिये, सारी शक्ति बटोर !!2!!
अब सोये हैवानियत, सजग रहे इंसान !
करें बुराई दूर हर, लगा-लगा मन-प्राण !!
नर्क बुराई का हटे, बसे धरा पर स्वर्ग !
रहे प्रेम से यहाँ का, शान्ति से हर वर्ग !!
घृणा को जीतें प्रेम के, वीर लगा कर जोर !
नर्कासुर-वध कीजिये, सारी शक्ति बटोर !!3!!
उलूक पर कहाँ चढ़ रही है ?
जवाब देंहटाएंशुभकामनाऐं दीप पर्व की ।
सुंदर रचना ।