(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
वाह ! वाह !! क्या खूब है, यह युग का बदलाव !
हारे हैं इंसान से, कूकर और बिलाव !!
कैट-वाक में देखिये, ललनाओं का रूप !
खुले खुले मैदान की,
कामुक कामुक धूप !!
छुपे हुये हर हर अंग पर, दो अंगुल का चीर’ !
भर भर अंजुलि’ पीजिये, खुला रूप का नीर !!
हर आयु में झेलिये, यौवन का सैलाव !
हारे हैं इंसान’ से, कूकर और बिलाव !!1!!
फैशन टी.वी. देख कर, कामुक हुये किशोर !
काम की मैली गर्द से, गँदला उम्र का ‘भोर !!
कच्ची कच्ची आयु में, कली बनी है फूल !
यौवन के सुख ढूँढती, अपना बचपन भूल !!
तट से पहले डूबती, बीच धार में नाव !
हारे हैं इंसान से, कूकर और बिलाव !!2!!
इन चित्रों से कर रही, पशुता मन
में वास !
बचपन से पहले जगी, है यौवन की प्यास !!
जंघा-जघन-प्रदेश तक, हुये आवरण-हीन !
दर्शक गण का इन्होंने, लिया चैन-सुख छीन !!
मानस-सरवर बन गया, है मैला तालाव !
हारे हैं इंसान से, कूकर और बिलाव !!3!!
सुंदर !
जवाब देंहटाएंलाज़वाब और सटीक प्रस्तुति...आज के यथार्थ का लाज़वाब चित्रण...
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