(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
यौन-क्रान्ति के नाम पर, ओढ़े मलिन विचार |
आठो रतियाँ’ कर रहीं,
कामातुर व्यवहार !!
काम-वासना के लिये, बन कर के सामान !
रति खुल कर के आ गई, खो कर निज सम्मान !!
इन्सानी जज्वात
में,
कामुक ज़हर
उंडेल |
नागिन बन कर वासना, खेल
रही है खेल ||
संयम को डसने
चली, केंचुल-वसन उतार !
आठो रतियाँ कर रहीं,
कामातुर व्यवहार !!1!!
कभी द्रौपदी दुखी थी, लख कर
लुटती लाज !
स्वयम निर्वसन हो रही, बड़े चाव
से आज !!
विज्ञापन-व्यवसाय का,
लालच से गठजोड़ |
अंग-प्रदर्शन के लिये, लगी हुई
है होड़ !!
भौतिक सुख की चाह में, हैं मन की बीमार !
आठो रतियाँ कर रहीं,
कामातुर व्यवहार !!2!!
वसन-हीन तन देख कर, हुये अशीतल नैन !
कामाग्नि है दहकती,
छिना चित्त का चैन !!
इच्छा अनियन्त्रित हुई,
म्रर्यादा से हीन !
प्यासी हो कर भटकतीं,
लेतीं हर सुख छीन !!
शान्त स्नेह के तेल में,
बिखराती अंगार !
आठो रतियाँ कर रहीं,
कामातुर व्यवहार !!3!!
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