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शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (12) दिगम्बरा रति (च) प्यासी वासना |

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 
यौन-क्रान्ति के नाम पर, ओढ़े मलिन विचार |

आठो रतियाँ’  कर  रहींकामातुर व्यवहार !!

काम-वासना  के  लियेबन   कर  के  सामान !

रति खुल कर के आ गई, खो कर निज सम्मान !!

इन्सानी  जज्वात   में,   कामुक  ज़हर   उंडेल |

नागिन  बन कर वासना,  खेल  रही  है  खेल ||

संयम  को  डसने   चली,   केंचुल-वसन  उतार !

आठो रतियाँ  कर   रहीं,   कामातुर व्यवहार !!1!!


कभी  द्रौपदी  दुखी  थीख  कर  लुटती   लाज !

स्वयम  निर्वसन  हो  रही, बड़े चाव  से  आज  !!

विज्ञापन-व्यवसाय  का,   लालच  से  गठजोड़ |

अंग-प्रदर्शन  के   लियेलगी  हुई   है   होड़ !!

भौतिक सुख  की चाह  में,  हैं  मन  की  बीमार !

आठो रतियाँ  कर   रहीं,   कामातुर  व्यवहार !!2!!


वसन-हीन तन  देख  करहुये  अशीतल  नैन !

कामाग्नि  है  दहकतीछिना  चित्त  का  चैन !!

इच्छा   अनियन्त्रित   हुई,   म्रर्यादा  से  हीन !

प्यासी हो कर भटकतींलेतीं  हर सुख  छीन !!

शान्त  स्नेह  के  तेल  में,   बिखराती  अंगार !

आठो रतियाँ  कर   रहीं,   कामातुर व्यवहार !!3!!




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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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