(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
मिटी सादगी ह्रदय के, उथले हुये विचार !
मानवता में पनपते, पशुता के व्यवहार !!
काम-कला का प्रदर्शन, खुले में करते लोग !
पशुओं जैसा चाहते, मुक्त यौन के भोग !!
ये मानवता के सभी, नियम रहे हैं तोड़ !
पशु-प्रवृत्ति के प्रदर्शन, की लगती है होड़ !!
इसीलिये तो ह्रदय में, भरने लगे विकार !
मानवता में पनपते, पशुता के व्यवहार !!1!!
प्रेम का अर्थ शरीर का, रमण नहीं है मात्र !
कामी जन- तन भोगते, बना वासना-पात्र ||
रति की मदिरा पी तथा, तन को ठोकर मार |
जो जन सुख हैं भोगते, वे हैं सभ्य गँवार ||
ऐसे लोगों से बना, है जंगल संसार |
मानवता में पनपते, पशुता के व्यवहार !!2!!
खुले-खुले खल खेलते, खुल कर रति के खेल !
‘इंसानी तहज़ीब को, नर्क में रहे ढकेल !!
देखो, क्लब, पार्क तथा, समुद्र-तट इत्यादि !
में कामी जन दिखाकर, उच्छृंखल उन्माद ||
करते बन्धन तोड़ कर, पशुवत यौनाचार !
मानवता में पनपते, पशुता के व्यवहार !!3!!
मिटी सादगी ह्रदय के, उथले हुये विचार !
मानवता में पनपते, पशुता के व्यवहार !!
काम-कला का प्रदर्शन, खुले में करते लोग !
पशुओं जैसा चाहते, मुक्त यौन के भोग !!
ये मानवता के सभी, नियम रहे हैं तोड़ !
पशु-प्रवृत्ति के प्रदर्शन, की लगती है होड़ !!
इसीलिये तो ह्रदय में, भरने लगे विकार !
मानवता में पनपते, पशुता के व्यवहार !!1!!
प्रेम का अर्थ शरीर का, रमण नहीं है मात्र !
कामी जन- तन भोगते, बना वासना-पात्र ||
रति की मदिरा पी तथा, तन को ठोकर मार |
जो जन सुख हैं भोगते, वे हैं सभ्य गँवार ||
ऐसे लोगों से बना, है जंगल संसार |
मानवता में पनपते, पशुता के व्यवहार !!2!!
खुले-खुले खल खेलते, खुल कर रति के खेल !
‘इंसानी तहज़ीब को, नर्क में रहे ढकेल !!
देखो, क्लब, पार्क तथा, समुद्र-तट इत्यादि !
में कामी जन दिखाकर, उच्छृंखल उन्माद ||
करते बन्धन तोड़ कर, पशुवत यौनाचार !
मानवता में पनपते, पशुता के व्यवहार !!3!!
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