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बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (12) दिगम्बरा रति (घ) लूटे अनंग-पतंग

(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
कितने मैले हो  गयेप्रेम-हँस  के पंख !
सदाचार की वायु में, उछली इतनी  पंक !!
सम्बन्धों की नाव  है,   रिश्तों  की  पतवार |
दोनों  टूटे  किस  तरह,   पार  करें  मझधार !!
सीताओं को मिल रहा, घर  में ही  वनवास !
कौशल्या भी बन गयींकैकेयी  सी  सास !!
लखन-भरत के स्नेह में, लगे स्वार्थ के डंक |
सदाचार की वायु में, उछली इतनी  पंक !!1!!
हमें मिला  है प्रगतिका, सा  नया इनाम!
नयी उम्र की फ़सल भीनशे  की  हुई गुलाम !!
फैशन-शो  की  नग्नता,   देखें  नौनिहाल !
हल  करने  को  घूमतेकामुक  कई  सवाल !!
भोलेपन  पर  लग  गये, कितने मलिन  कलंक !
सदाचार  की वायु  मेंउछली  इतनी  पंक !!2!!
छोटी   छोटी  तितलियाँढूँढ  रही   हैं   फूल !
कोमल-कमसिन  कोख  में, पलने  लागी  भूल !!
मर्यादा  की   डोर  सेबाँधी  लाज-पतंग !
दाँव-पें  से   कट   गयीलूटे   उसे  अनंग !!
बालापन  के  पटल   पर,   लिखे  वासना-अंक  !|
सदाचार  की वायु  मेंउछली  इतनी  पंक !!3!!

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    अष्टमी-नवमी और गाऩ्धी-लालबहादुर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    --
    दिनांक 18-19 अक्टूबर को खटीमा (उत्तराखण्ड) में बाल साहित्य संस्थान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
    जिसमें एक सत्र बाल साहित्य लिखने वाले ब्लॉगर्स का रखा गया है।
    हिन्दी में बाल साहित्य का सृजन करने वाले इसमें प्रतिभाग करने के लिए 10 ब्लॉगर्स को आमन्त्रित करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी है।
    कृपया मेरे ई-मेल
    roopchandrashastri@gmail.com
    पर अपने आने की स्वीकृति से अनुग्रहीत करने की कृपा करें।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
    सम्पर्क- 07417619828, 9997996437
    कृपया सहायता करें।
    बाल साहित्य के ब्लॉगरों के नाम-पते मुझे बताने में।

    जवाब देंहटाएं
  2. सदाचार की वायु तो अब दुराचार की वायु ही बन गई है, इतना पंक उछल रहा है।

    जवाब देंहटाएं

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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