(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
कितने मैले हो गये, प्रेम-हँस के पंख !
सदाचार की वायु में, उछली इतनी
पंक !!
सम्बन्धों की नाव है, रिश्तों की पतवार |
दोनों टूटे किस तरह, पार करें मझधार !!
सीताओं को मिल रहा, घर में ही वनवास !
कौशल्या भी बन गयीं,
कैकेयी सी सास !!
लखन-भरत के स्नेह में, लगे स्वार्थ के डंक |
सदाचार की वायु में, उछली इतनी पंक !!1!!
हमें मिला है ‘प्रगति’ का, ऐसा नया इनाम’ !
नयी उम्र की फ़सल भी,
नशे की हुई गुलाम !!
फैशन-शो की नग्नता,
देखें नौनिहाल !
हल करने को घूमते,
कामुक कई सवाल !!
भोलेपन पर लग गये, कितने मलिन कलंक !
सदाचार की वायु में, ‘उछली’ इतनी
पंक !!2!!
छोटी छोटी तितलियाँ, ढूँढ रही हैं फूल !
कोमल-कमसिन कोख में, पलने लागी भूल !!
मर्यादा की डोर से,
बाँधी लाज-पतंग !
दाँव-पेंच से कट
गयी, लूटे उसे अनंग !!
बालापन के पटल पर, लिखे
वासना-अंक !|
सदाचार की वायु में,
उछली इतनी पंक !!3!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
अष्टमी-नवमी और गाऩ्धी-लालबहादुर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।
--
दिनांक 18-19 अक्टूबर को खटीमा (उत्तराखण्ड) में बाल साहित्य संस्थान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
जिसमें एक सत्र बाल साहित्य लिखने वाले ब्लॉगर्स का रखा गया है।
हिन्दी में बाल साहित्य का सृजन करने वाले इसमें प्रतिभाग करने के लिए 10 ब्लॉगर्स को आमन्त्रित करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी है।
कृपया मेरे ई-मेल
roopchandrashastri@gmail.com
पर अपने आने की स्वीकृति से अनुग्रहीत करने की कृपा करें।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
सम्पर्क- 07417619828, 9997996437
कृपया सहायता करें।
बाल साहित्य के ब्लॉगरों के नाम-पते मुझे बताने में।
सदाचार की वायु तो अब दुराचार की वायु ही बन गई है, इतना पंक उछल रहा है।
जवाब देंहटाएं