(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
नग्नवाद ने आजकल,
किये कलुष व्यवहार !
गंगाजल में घुल गयी,
है मदिरा की धार !!
लाज-शील के देखिये, टूटे नाज़ुक
तार !
चीर-हरण के लिये
खुद, द्रौपदियाँ तैयार !!
बहुत भला होता
नहीं, यह जीने का ढंग |
आचरणों की सतह पर, चढ़ा प्रदूषित रंग’ ||
आदिमानवों की तरह, खुले मिथुन-आचार !
गंगाजल में घुल गयी,
है मदिरा की धार !!1!!
टूट गयी है हया की, कनकैया की डोर !
प्रगति-आँधियों, ने इसे, दिया आज झकझोर !!
कच्चे तिल में वासना,
का पनपा है तेल |
कमसिन कलियाँ औ भ्रमर, खेलें कामुक खेल ||
पूनम से पहले उठा,
है सागर में ज्वार !
गंगाजल में घुल गयी, है मदिरा की धार !!2!!
धन की प्यासी तितलियों, का देखो तो हाल
!
उठा पंख के वसन वे, कमा रही हैं माल ||
आचरणों की झील के, जल में भड़की आग |
इन्हें देख कर रूप की, प्यास रही है जाग ||
ठण्डे बादल काटती, गरम तड़ित-तलवार !
गंगाजल में घुल गयी,
है मदिरा की धार !!3!!
सुन्दर प्रस्तुति
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