(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
जग में क्यों फैला हुआ, है ‘दुर्दम आतंक’ |
‘मानवता की गोद’ में, है आतंक ‘कलंक’ ||
कुछ देशों इस विश्व में, नहीं ‘प्रेम’ का ज्ञान |
कैसे रहें पड़ोस में, हैं इस से अनजान ||
‘शासन की ‘चाहत’ बुरी, या ‘धरती का लोभ’ |
भोली जनता के हृदय, में भर देता क्षोभ ||
‘ह्रदय-गगन’ में खिन्न है, ‘राहू’-ग्रसा ‘मयंक’ |
‘मानवता की गोद’ में, है आतंक ‘कलंक’ ||१||
‘दहशत’ की इस ‘आग’ में, जले ‘भावना-बाग’ |
‘स्नेह-सुमन’ पजरे हुए, झुलस गये ‘अनुराग’ ||
कितने ‘भँवरे भाव के’, जले हों गये ‘राख’ |
और ‘कामना-तितलियों,’ के झुलसे हैं ‘पाँख’ ||
और ‘कामना-तितलियों,’ के झुलसे हैं ‘पाँख’ ||
लगता ‘ज्वालामुखी’ से, झरी ‘आग की ‘पंक’ |
‘मानवता की गोद’ में, है आतंक ‘कलंक’ ||२||
‘सत्तावादी सोच’ ने, हरा सभी का ‘हर्ष’ |
इस से पीड़ित है नहीं, केवल भारतवर्ष ||
अमेरिका या अरब या, रूस, चीन, जापान ||
इस के हुये शिकार सब, खो कर अपनी ‘शान’ ||
इस दुनियाँ में अब कहाँ, कौन रहे ‘निश्शंक’?|
‘मानवता की गोद’ में, है आतंक ‘कलंक’ ||३||
वाह बहुत खूब ।
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