(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
मृग-छौने के अंक में, चुभता बिच्छू-डंक |
देखो ऐसे डस गया, ‘संस्कृति’ को आतंक !!
‘आतंकों’ से काँपते, हैं ‘जनता’ के ‘पैर’ |
जैसे कोई ‘मेमना’, ‘वधिक’ से मांगे खैर ||
जैसे कोई ‘मेमना’, ‘वधिक’ से मांगे खैर ||
जनता ‘भय के ताल’ में, रही इस तरह तैर |
जैसे ‘मछली’ को हुआ, ‘मगरमच्छ’ से वैर ||
‘स्वतंत्रता’ के ‘चाँद’ के, ‘माथे’ लगा ‘कलंक’ |
देखो ऐसे डस गया, ‘संस्कृति’ को ‘आतंक’ !!१!!
आतंकी पनपे यहाँ, ‘कंटालों’ में ‘शूल’ |
‘छल-बल’ से ‘हफ्ता’ तथा, ‘चन्दा’ रहे वसूल ||
‘शक्ति-प्रदर्शन’ के लिये, करते अत्याचार |
निर्दोषों को बेवजह, रहे निरन्तर मार ||
‘मन की गलियों’ में भरी, है ‘हिंसा की पंक’ |
देखो ऐसे डस गया, ‘संस्कृति’ को ‘आतंक’ !!२!!
जिसका ‘डण्डा’ सबल है, उसको पूरी छूट |
जिस पर ‘भृकुटी’ तन गयी, ले वह उसको लूट ||
ज्यों ‘कपोत’ पर ‘चील’ ने, ‘निठुर’ लगाई ‘घात’ |
‘हिंसा’ के यों हो रहे, जन जन में ‘उत्पात’ ||
लोग ‘शक्ति’ से हैं धनी, ‘मानवता’ से ‘रंक’ |
देखो ऐसे डस गया, ‘संस्कृति’ को ‘आतंक’ !!३!!
सामयिक और सटीक ,सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंगुरु कैसा हो !
गणपति वन्दना (चोका )