(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
जगे ‘कंस-रावण’ यहाँ, सोये ‘राम व श्याम’ !
‘वित्तवाद’ की ‘प्रगति’ का, कैसा मिला ‘इनाम’ !!
‘बड़े-बड़े अपराध’ अब, बने हुये ‘व्यवसाय’ !
‘न्याय’ छुपाकर ‘मुहँ’ चला, पनप रहा ‘अन्याय’ !!
‘दहेज़’ के दुष्पाप’ ने, ‘प्रेमी’ लिये लपेट !
भोली भाली लडकियाँ, चढ़ीं इसी की भेंट !!
‘स्नेहिल रिश्तों’ के लगे, महँगे महँगे ‘दाम’ !
‘वित्तवाद’ की ‘प्रगति’ का कैसा मिला ‘इनाम’ !!१!!
मन्दिर-मस्जिद कुछ, कई, गुरूद्वारे व मज़ार |
गिरिजाघर-दरगाह कुछ, बने आज ‘बाज़ार’ ||
हुए ‘सियासत’ के कई, हैं ‘अड्डे’ बेजोड़ |
‘शैतानों’ से कर रहे, चुपके से ‘गठजोड़’ ||
कुछ ‘तीर्थ’ भी हों गये, ‘हैं ‘अधर्म’ के ‘धाम’ |
‘वित्तवाद’ की ‘प्रगति’ का कैसा मिला ‘इनाम’ !!२!!
‘खुदगर्ज़ी’ की ‘डाल’ पर, फलते ‘फल- अपराध’ |
‘शोषण-पशु’ खा कर इन्हें, घूम रहे ‘निर्वाध ||
रोई ‘भारत की धरा’, सूख गये हैं ‘नयन’ !
‘दिल के दर्दों’ को नहीं, कर पाती है ‘सहन’ !!
पता नहीं इस का कभी, क्या होगा परिणाम !
‘वित्तवाद’ की ‘प्रगति’ का कैसा मिला ‘इनाम’ !!३!!
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