(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
जुगनू पकड़े हाथ में, ‘मलिन’ हुआ ‘स्पर्श’ !
लालच-‘मैली चमक’ से, ‘उन्हें’ हुआ है ‘हर्ष’ !!
‘’सोने’ के ‘पिंजड़े’ फँसी, ‘मैना’ हुई ‘गुलाम’
!
‘बन्दी’ बन कर भोग ‘सुख’, समझा ‘दण्ड’ ‘‘इनाम’ !!
‘तृष्णा’ चमकीली बसा, मन व्याकुल
बेचैन !
जगते, सोते, ‘लाभ’ की, ‘चिन्ता’ है ‘दिन-रैन’ !!
पतित हुआ है ‘आचरण’, समझ रहे ‘उत्कर्ष’ !
लालच-‘मैली चमक’ से, ‘उन्हें’ हुआ है ‘हर्ष’ !!१!!
बेच दिया ‘ईमान’ को, बेचा और ‘ज़मीर’ !
बेच दिया ‘ईमान’ को, बेचा और ‘ज़मीर’ !
‘भावुकता’ के ‘तन’ कसी, ‘सोने की जंजीर’ !!
‘रिश्ते–नाते-दोस्ती’, सब से बढ़ कर ‘वित्त’ !
‘अपनों’ से बढ़ ‘स्वर्ण’ है, लगा उसी में ‘चित्त’ !!
बस ‘सिक्कों की खनक’ में, डूबे हैं ‘प्रेम-विमर्श’ !
लालच-‘मैली चमक’ से, ‘उन्हें’ हुआ है ‘हर्ष’ !!२!!
‘प्रेम’ हुआ ‘व्यापार’ सा, ‘दिल हो गये ‘दुकान’ |
‘धन की चोट’ से हो गये, दुर्बल हैं ‘मन-प्राण’ ||
‘श्रद्धा-आस्था’ हो गयीं, हैं कितनी ‘कमज़ोर’ |
‘कोष भक्ति का’’ चुर गया, घुसा ‘लोभ’ का ‘चोर’ ||
फँसा अज़ब ‘जंजाल’ में, सारा भारतवर्ष |
लालच-‘मैली चमक’ से, ‘उन्हें’ हुआ है ‘हर्ष’ !!३!!
सटीक....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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