(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
जो ‘मैले आचरण’ को,
अम्ब ! निखारें ‘नित्य’ !
कर दे माँ ! ऐसे
यहाँ, ‘काव्य-कला-साहित्य’ !!
हर ‘लेखक-कवि’ के
‘ह्रदय’, में माता ! तू बैठ !
‘कला-दिग्गजों’ में
जाननि ! रख तू ऐसी ‘पैठ’ !!
सबकी ‘रचनाधर्मिता’
में हो ऐसी ‘शक्ति’ !
‘मानवता’ के लिए माँ
! बनी रहे ‘अनुरक्ति’ !!
सदा रहें ‘जीवन्त’
माँ !, ‘सुन्दर’, ‘शिव’ औ ‘सत्य’ !
कर दे माँ ! ऐसे
यहाँ, ‘काव्य-कला-साहित्य’ !!१!!
‘गन्दे नालों’ से
हुई, जैसे गन्दी ‘झील’ |
‘नग्न्वाद’ से हुए
हैं, ‘काव्य-कला’ अश्लील ||
‘घोर वासना’ उगलते,
सभी ‘कला के रूप’ |
‘धन’ पाने की
‘लालसा’, हुई बहुत ‘विद्रूप’ ||
कर कुछ ऐसा हों
नहीं, ‘पैशाचिक दुष्कृत्य’ !
कर दे माँ ! ऐसे
यहाँ, ‘काव्य-कला-साहित्य’ !!२!!
‘प्रेम-परिन्दों’ का किया, है इसने ‘विध्वंस’ |
‘प्रेम-परिन्दों’ का किया, है इसने ‘विध्वंस’ |
‘निश्चर उलूक’ सा
हुआ, तेरा ‘वाहन हंस’ ||
कर कुछ,
‘कला-सुपन्थ’ के, ‘पथिक’ न हों ‘पथ-भ्रष्ट’ !
‘आदर्शों’ के ‘बाग’ के,
“प्रसून” मत हों नष्ट ||
हमें सिखायें जो सदा, करना ‘अच्छे कृत्य’ |
कर दे माँ ! ऐसे यहाँ,
‘काव्य-कला-साहित्य’ !!३!!
bahut sundar abhivyakti .badhai
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