गुरु ! तुम्हारी ‘शक्ति’ है, जग में परम ‘अनूप’ !!
बिना तुम्हारे विश्व में, कौन हमारे साथ ?
दो आशीष मुझे प्रभु, रख कर सर पर साथ !!
जिस पर गुरु का हाथ हो, होता वह निष्पाप |
उस का ‘तीनो शूल’ का, मिट जाता सन्ताप ||
ज्यों छाता ‘छाया’ करे, हरे ‘जेठ की धूप’ ||
गुरु ! तुम्हारी ‘शक्ति’ है’ जग में परम अनूप !!१!!
‘चाल कुचाली’ चल चुका, हे गुरु, ‘काल-कुचक्र’ !
सारे भारत पर पड़ी, दृष्टि ‘नियति’ की वक्र ||
प्रभु ! तुम ही तो ‘राष्ट्र’ हो, तुम ही अखिल समाज !
इस समाज को ग्रस लिया, ‘कर्क रोग’ ने आज ||
‘कड़वा काव्य’ नीम सा, है औषधि स्वरूप |
गुरु ! तुम्हारी ‘शक्ति’ है’ जग में परम अनूप !!२!!
यद्यपि लगती है बुरी, ‘पीड़ा’ देती ‘चोट’ |
पर ‘कुम्हार’ की ‘चोट’ से, घटते ‘घट’ के ‘खोट’ ||
हिलते जब जब ‘चोट’ से, हैं ‘वीणा’ के तार |
उपजा करती है तभी, ‘मधुर मधुर झंकार’ ||
और हाथ की ‘चोट’ से, अन्न’ फटकता ‘सूप’ |
गुरु ! तुम्हारी ‘शक्ति’ है’ जग में परम अनूप !!३!!
गुरु ! तुम्हारी ‘शक्ति’ है, जग में परम ‘अनूप’ !!
बिना तुम्हारे विश्व में, कौन हमारे साथ ?
दो आशीष मुझे प्रभु, रख कर सर पर साथ !!
जिस पर गुरु का हाथ हो, होता वह निष्पाप |
उस का ‘तीनो शूल’ का, मिट जाता सन्ताप ||
ज्यों छाता ‘छाया’ करे, हरे ‘जेठ की धूप’ ||
गुरु ! तुम्हारी ‘शक्ति’ है’ जग में परम अनूप !!१!!
‘चाल कुचाली’ चल चुका, हे गुरु, ‘काल-कुचक्र’ !
‘चाल कुचाली’ चल चुका, हे गुरु, ‘काल-कुचक्र’ !
सारे भारत पर पड़ी, दृष्टि ‘नियति’ की वक्र ||
प्रभु ! तुम ही तो ‘राष्ट्र’ हो, तुम ही अखिल समाज !
इस समाज को ग्रस लिया, ‘कर्क रोग’ ने आज ||
‘कड़वा काव्य’ नीम सा, है औषधि स्वरूप |
गुरु ! तुम्हारी ‘शक्ति’ है’ जग में परम अनूप !!२!!
यद्यपि लगती है बुरी, ‘पीड़ा’ देती ‘चोट’ |
पर ‘कुम्हार’ की ‘चोट’ से, घटते ‘घट’ के ‘खोट’ ||
हिलते जब जब ‘चोट’ से, हैं ‘वीणा’ के तार |
उपजा करती है तभी, ‘मधुर मधुर झंकार’ ||
और हाथ की ‘चोट’ से, अन्न’ फटकता ‘सूप’ |
गुरु ! तुम्हारी ‘शक्ति’ है’ जग में परम अनूप !!३!!
वाह बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंभाव और अर्थ दोनों में सटीक सशक्त स्तुति गुरु दोहावली।
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना
भावपूर्ण अभिव्यक्ति