( कुछ चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
पड़ा विकट ‘दुर्बोध’ का, जग पर ‘भीषण भार’ |
‘गुरु’ बन कर ‘जगदीश’ ने, सदा किया ‘उद्धार’ ||
वरन्तुत औ कौत्स ने, रघु को किया ‘महान’ |
जिससे रघु के ‘वंश’ की, अब भी जीवित ‘आन’ ||
थे ‘गुरुओं’ में श्रेष्ठ गुरु’, ‘योगी’ हुये वशिष्ठ |
ज्यों ‘तारों’ में ‘अटल ध्रुव’, रखता ‘मान’ विशिष्ट ||
‘सूर्य-वंश’ ने ‘दुखों’ से, जग को लिया उबार |
‘गुरु’ बन कर ‘जगदीश’ ने, सदा किया ‘उद्धार’ ||१||
‘विश्वामित्र-वशिष्ठ’ ने, किये ‘राम’ भगवान |
देकर ‘शिक्षा-दीक्षा’, किया ‘चरम-उत्थान’ ||
‘सृष्टि-आदि’ से ‘अन्त’ तक, का ‘पावन इतिहास’ |
रचे जिन्होंने, ‘राष्ट्र-गुरु’, जैसे ‘वेद व्यास’ ||
रच कर ‘ग्रन्थ’ पुराण के, युग का किया सुधार |
‘गुरु’ बन कर ‘जगदीश’ ने, सदा किया ‘उद्धार’ ||२||
द्रोणाचार्य से मिली, ‘विद्या’ जिन्हें ‘अशेष’ |
‘कौरव-पाण्डव’ में हुये, अर्जुन ‘वीर विशेष’ ||
किया ‘परन्तप’ कृष्ण ने, दे ‘गीता का ज्ञान’ |
‘कौरव-दल’ को मार कर, मिला जिन्हें ‘सम्मान’ ||
ऐसे गुरु की ‘शक्ति’ का, कौन पा सका ‘पार’ ?
‘गुरु’ बन कर ‘जगदीश’ ने, सदा किया ‘उद्धार’ ||३||
सुन्दर -
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएं