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गुरुवार, 10 जुलाई 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (3)गुरु-वन्दना(ख) गुरु-गुण-गान(iii) सदा किया ‘उद्धार’ |

( कुछ चित्र 'गूगल-खोज'से साभार) 

पड़ा विकट ‘दुर्बोध’ का, जग पर ‘भीषण भार’ |

‘गुरु’ बन कर ‘जगदीश’ ने, सदा किया ‘उद्धार’ ||


वरन्तुत औ कौत्स ने, रघु को किया ‘महान’ |

जिससे रघु के ‘वंश’ की, अब भी जीवित ‘आन’ ||

थे ‘गुरुओं’ में श्रेष्ठ गुरु’, ‘योगी’ हुये वशिष्ठ |

ज्यों ‘तारों’ में ‘अटल ध्रुव’, रखता ‘मान’ विशिष्ट ||

‘सूर्य-वंश’ ने ‘दुखों’ से, जग को लिया उबार |

‘गुरु’ बन कर ‘जगदीश’ ने, सदा किया ‘उद्धार’ ||१||
‘विश्वामित्र-वशिष्ठ’ ने, किये ‘राम’ भगवान |

देकर ‘शिक्षा-दीक्षा’, किया ‘चरम-उत्थान’ ||

‘सृष्टि-आदि’ से ‘अन्त’ तक, का ‘पावन इतिहास’ |

रचे जिन्होंने, ‘राष्ट्र-गुरु’, जैसे ‘वेद व्यास’ ||

रच कर ‘ग्रन्थ’ पुराण के, युग का किया सुधार |

‘गुरु’ बन कर ‘जगदीश’ ने, सदा किया ‘उद्धार’ ||२||
द्रोणाचार्य से मिली, ‘विद्या’ जिन्हें ‘अशेष’ |

‘कौरव-पाण्डव’ में हुये, अर्जुन ‘वीर विशेष’ ||

किया ‘परन्तप’ कृष्ण ने, दे ‘गीता का ज्ञान’ |

‘कौरव-दल’ को मार कर, मिला जिन्हें ‘सम्मान’ ||

ऐसे गुरु की ‘शक्ति’ का, कौन पा सका ‘पार’ ?

‘गुरु’ बन कर ‘जगदीश’ ने, सदा किया ‘उद्धार’ ||३||


2 टिप्‍पणियां:

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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