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बुधवार, 9 जुलाई 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (3)गुरु-वन्दना(ख) गुरु-गुण-गान(ii) ‘अमर ज्ञान’ के ‘कोष’ |

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 


‘गुरु की महिमा’ का कभी, किसने पाया ‘पार’ !

‘गुरु-महिमा’ के सामने, है छोटा ‘संसार’ ||

वियों के गुरु ‘आदिकवि’, वाल्मीकि थे ‘धन्य’ |

रामायण सा रच दिया, काव्य ‘करुणा-जन्य’ ||

‘वृहस्पति’ से ‘देव-गुरु’, ‘अमर ज्ञान’ के ‘कोष’ |

जिसके ‘ज्ञान-प्रसाद’ से, ‘सुर’ पाते ‘सन्तोष’ ||

‘गुरु’ तुम्हारी सदा से, ‘लीला’ अपरम्पार |

‘गुरु-महिमा’ के सामने, है छोटा ‘संसार’ ||१||


‘राम-भक्ति’ का ‘मन्त्र’ दे,  नारद ने हनुमान |

अमर किये ‘युग-युग’ तलक, ‘आस्था-मूर्त्तिमान’ !!

जनक; ‘राजऋषि’ के गुरु, ज्ञानी अष्टावक्र |

जिनकी ‘गीता’, ‘ज्ञान’ की, ‘थाती’ परम विचित्र ||

मेरा क्या जो आप पर, मैं कर सकूँ निसार ?

‘गुरु-महिमा’ के सामने, है छोटा ‘संसार’ ||२||


‘तुला’ परिक्षा की बना, लेते ‘प्रतिभा’ तोल |

जो मानव ‘उत्तीर्ण’ हो, होता वह ‘अनमोल’ ||

‘हरिश्चन्द्र’ से परख कर, बन कर ‘विश्वामित्र’ |

‘ज्ञान-कसौटी’ से किये, ‘मानव’ कई ‘पवित्र’ ||

‘दिल’ में ‘निष्ठा-आस्था’, का भर देते ‘सार’ |

‘गुरु-महिमा’ के सामने, है छोटा ‘संसार’ ||३||





12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और सारगर्भित दोहे...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10-07-2014 को चर्चा मंच पर उम्मीदें और असलियत { चर्चा - 1670 } में दिया गया है
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. कल 11/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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