मित्रों ! इस सर्ग 'रस याचना' में कोई भी रचना उस रस का परिपाक नहीं
है, अपितु माता से उस रस को उसी प्रकार से काव्य में भरने की
प्रार्थना है ! रस के लक्षण क्या होने चाहिये यह मनन-विश्लेषण
किया गया है
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
‘माया-मल’ से अति ‘मलिन’,
‘पंक’ अखिल ‘संसार’ |
मुझे निकालो यत्न कर, हर
‘अवगुण’ के पार !!
‘घृणित आचरण’ पर पड़ी, उतरे
जननि ‘नकाब’ !
‘अन्तर्मन’ पर ‘घृणा’ का,
रहे न तनिक ‘दबाव’ !!
निथरे ‘अन्तर’ की ‘घृणा’,
ऐसा हो ‘वीभत्स’ !
कर दे माँ, ‘मल-हीन’ मन,
मैं हूँ तेरा ‘वत्स’ !!
‘शुद्ध’ करो ‘अन्त:करण’,
सारी ‘मैल’ निखार !
मुझे निकालो यत्न कर, हर
‘अवगुण’ के पार !!१!!
किसी ‘झील’ की तरह जो, हो
‘लहरों’ से हीन |
जिसके ‘तल’ पर भी दिखे,
‘छोटी सुई महीन’ ||
ऐसे ‘निर्मल-विमल’ हो,
‘अमल’ ‘काव्य-रस’ शान्त !
जिसमें तो ‘स्नान’ कर,
‘कान्ति-हीन’ हों ‘कान्त’ !!
‘पारदर्शिता’ चित्त की, देखें
मन के पार !
मुझे निकालो यत्न कर, हर
‘अवगुण’ के पार !!२!!
‘गवेषणा’ हो ‘सत्य’ की, हो
‘असत्य-अवरोध’ !
कुछ ‘अद्भुत’, कुछ
‘तथ्य-नव’, का कर पायें ‘शोध’ ||
‘चमत्कार’ हों कर्म के,
‘शठ-माया’ से दूर !
‘ज्ञान’ और ‘विज्ञान’ हों,
‘यथार्थ’ से भरपूर !!
‘मिथ्यापन’ से अलग हों, ‘जीवन’
के ‘व्यवहार’ !
मुझे निकालो यत्न कर, हर
‘अवगुण’ के पार !!३!!
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(मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर भी पधारें !)
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