(सारे चित्र ''गूगल-खोज' से साभार)
मित्रों ! इस काव्य-पुस्तक में प्रत्येक वन्दना-सर्ग में कुछ रचनायें परिवर्धित की हैं ताकि उस विषय में सभी पहलू सामने आ जाएँ -सारे दार्शनिक पक्ष उभर कर आयें ! आप का स्वागत है आप की शुभ कामना के पिपासा है | आप के मन में सरस्वती मुझे मार्ग-दर्शन देगी !!
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मेरे सर पर
लदा है, माँ ! ‘पापों का भार |
‘हाथ’ धरो माँ, ‘शीश’ पर, करो तनिक ‘उद्धार’ !!
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दीं-हीन हूँ
‘बोध’ से, ‘बालक’ परम ‘अबोध’ |
‘ममता’ की
‘पय-धार’ से, कर ‘मन’ का परिशोध ||
तुम तो
जगत्प्रसिद्ध हो, ‘वात्सल्य’ की ‘मूर्ति’ |
मिला न जग से,
अब करो, तुम ‘दुलार’ की पूर्ति ||
सरस उठे हर ‘रूक्षता’, करो ‘तरल बौछार’ !
‘हाथ’ धरो माँ, ‘शीश’ पर, करो तनिक ‘उद्धार’ !!१!!
हरो ‘विश्रृंखल वासना’, करो नियंत्रित ‘काम’ |
‘उच्छृंखाल’ हर ‘वृत्ति’ पर, माता लगे विराम ||
‘चिंतन-मनन’ ‘सुकाम’ हो,’कामी’ रहे न वृत्ति’ |
हो ‘रहस्य’ श्रृंगार में, हो
संतुलित ‘प्रवृत्ति’ ||
‘काव्य-कलेवर’ में करो, ‘सृजना’ का संचार |
‘हाथ’ धरो माँ, ‘शीश’ पर, करो तनिक ‘उद्धार’ !!२!!
हों
‘संयोग-वियोग’ ये, उभय ‘प्रेम के पक्ष’ |
पावन
‘गंगा-नीर’ से, अमल-विमल औ स्वच्छ |
‘उपालम्भ’
उद्वेग से, रहित शांत निष्पाप |
‘विप्रलम्भ’
के मान भी, भरें न मन में ‘ताप’ ||
सदा ‘प्रेम-रस-पान’ में, ‘प्रेमी’ रहें ‘उदार’ |
‘हाथ’ धरो माँ, ‘शीश’ पर, करो तनिक ‘उद्धार’ !!३!!
बहुत सुंदर !
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