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‘तुम’ में ‘सब’, ‘सब’ में ‘तुम्हीं, मेरे
कृपा-निधान !
तुम ‘प्रभु’, तुम ‘परमात्मा’, हो तुम्हीं
‘भगवान’ ||
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तुम ‘अनाम’ हो किन्तु हैं, कोटि तुम्हारे ‘नाम’ |
‘रोम-रोम’ से है तुम्हें, मेरे ‘ईश’ प्रणाम ||
तुम उस की हर ‘दशा’ में, सुनते हो फ़रियाद |
‘निष्ठा-श्रद्धा-आस्था’, सेम जो करता ‘याद’ ||
‘राजा’ या ‘कंगाल’ सब, तुमको एक सामान |
तुम ‘प्रभु’, तुम ‘परमात्मा’, हो तुम्हीं
‘भगवान’ ||१||
तुम ‘निकेत’ से रहित हो, यहाँ-वहाँ, हर
‘ठाँव’ |
एक बराबर हैं तुम्हें, ‘तची धूप’ या ‘छाँव’
||
‘पूजा-घर’ से तुम्हें क्या, ‘मन्दिर’ से क्या
‘काम’ ?
जिस ‘दिल’ में हो ‘प्रेम’ बस, वहीं तुम्हारा
‘धाम’ ||
एक बराबर हैं तुम्हें, ‘राज-भवन’-श्मशान’ |
तुम ‘प्रभु’, तुम ‘परमात्मा’, हो तुम्हीं
‘भगवान’ ||२||
तुम
‘हो’, तुम ‘नहीं’ भी, तुम ‘अरूप’-‘बहुरूप’ |
सब
के प्रति ‘समभाव’ तुम, क्या ‘दरिद्र’ क्या ‘भूप’ !!
तुम्हें
‘भूख’ या ‘प्यास’ से, नहीं तनिक भी ‘काम’ |
पर
आरपित हर ‘भोग’ में, ‘रमते’ मेरे ‘राम’ ||
फिर ‘रूखी’ हो या ‘सरस. ‘पकवान-मिष्ठान’ |
तुम ‘प्रभु’, तुम ‘परमात्मा’, हो तुम्हीं
‘भगवान’ ||३||
बहुत सुन्दर भक्तिमय दोहे गीत .पढ़कर आनंदआ गया
जवाब देंहटाएंlatest post प्रिया का एहसास
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (17-02-2014) को "पथिक गलत न था " (चर्चा मंच 1526) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया -
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-