(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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प्रभु
! देखो ऐसी जली, यहाँ ‘पाप की आग’ |
सभी
जले ‘कलि-जवाल’ में, कहाँ सकें हम भाग ??
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‘प्रयास के साबुन’ विफल’, विफल ‘युक्ति का
नीर’ |
मन-आचरण विशुद्ध हों, करें कौन ‘तदवीर’ ??
कौन ‘बरेठा-गुरु’ मिले, इसको सके निखार ??
बिना
तुम्हारी कृपा के, मिटें किस तरह ‘दाग’ ?
सभी
जले ‘कलि-जवाल’ में, कहाँ सकें हम भाग ??१??
‘विलासिता-शय्या’ बिछा,
करके उस पर शयन |
‘श्रद्धा’ गहरी नींद
में, देख रही ‘दुस्स्वप्न’ ||
‘निष्ठा’,
‘भक्ति-सुभाव’ से, गयी आजकल ऊब |
‘आस्था’ ‘मद-मदिरा’
पिये, गयी ‘नशे’ में डूब ||
भग्न
‘प्रेरणा-भेरियाँ, कसून सकेगा जाग ?
सभी
जले ‘कलि-जवाल’ में, कहाँ सकें हम भाग ??२??
आतंकों-भय से हुई, सारी
दुनियाँ खिन्न |
हर ‘दिल’ में भर दो
‘दया’, हो कर तनिक प्रसन्न ||
‘रौद्र’ और ‘वीभत्स’
का, हुआ आपसी मेल |
‘क्रोध’-घृणा’ का हो
रहा, यहाँ ‘घिनौना खेल’ ||
“प्रसून”
की हर सोच में, भरे
‘करुण अनुराग’ |
सभी जले ‘कलि-जवाल’ में, कहाँ सकें हम भाग ??३??
दोहे गम्भीर चिंतन से भरे है ..
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति के लिए आभार!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (11-02-2014) को "साथी व्यस्त हैं तो क्या हुआ?" (चर्चा मंच-1520) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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