(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
(ग)सब का मल्लाह
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‘आहें’ रहती हैं दबी,मन में उठे ‘कराह’ |
कोई कहे, न कहे या, सब की सुनता ‘आह’ ||
‘रहम’ करे हर किसी पर, मेरा ‘पिया’ ‘रहीम’ |
जो भी भटके ‘विजन-वन’, उसे दिखाता ‘राह’ ||
उसे चाहता है ‘निडर’, ‘विषम बीहड़ों’ बीच |
फँसे ‘भंवर’ में ‘नाव’ जब, ‘वह’ सब का ‘मल्लाह’ ||
सब पर करता ‘क़रम’ ‘वह’, मेरा ‘पिया’ ‘क़रीम’ |
सब के देखे ‘कर्म’वह, उस की तेज़ ‘निगाह’ ||
कोई कितना ‘दीन’ हो, या कितना ही ‘हीन’ |
ध्यान करे उस ‘पिया’ का, बढ़ जाता ‘उत्साह’ ||
“प्रसून” मेरे ‘पिया’ को, प्यार से ले जो टेर |
आ कर ‘आड़े वक्त’ में, थामे ‘उस’ की ‘बाँह’ ||
(घ)बंधे न मेरा मीत |
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मेरा ‘पिया’ ‘अभेद’ है, बाँटे सब को
‘प्यार’ |
केवल मेरा ही नहीं, वह सब का है
‘यार’ ||
‘वह’ तो ‘परम स्वतन्त्र’ है, बिलकुल
‘बन्धन-हीन’ |
‘उसे’ बाँध ले, है कहाँ, है ऐसी
‘दीवार’ ??
जहाँ पुकारे जो उसे, लगा ‘ध्यान की
डोर’ |
वहाँ सुने वह ‘कान’ दे, उसकी तुरत
‘पुकार’ ||
गुरुद्वारा या ‘मठ-मढ़ी’, या कोई
’दरगाह’ |
‘मन्दिर-मस्ज़िद’, गोम्फा, कोई बड़ी
मज़ार ||
‘सम्प्रदाय’ या ‘धर्म’ में, बंधे न
‘मेरा मीत’ |
‘परम मुक्त’ को क़ैद कर, सके न
‘कारागार’ ||
“प्रसून”, बादल, हवा या,नील गगन की
धूप |
देता सब को एक सी,हो कर सदा उदार ||
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .सार्थक प्रस्तुति . .आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय--
very nice
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (17-01-2014) को "सपनों को मत रोको" (चर्चा मंच-1495) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'