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शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

नयी करवट(दोहा-गीतों पर एक काव्य) (१)(सब का यार)

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
(ग)सब का मल्लाह |
==============
‘आहें’ रहती हैं दबी,मन में उठे ‘कराह’ |
कोई कहे, न कहे या, सब की सुनता ‘आह’ ||
‘रहम’ करे हर किसी पर, मेरा ‘पिया’ ‘रहीम’ |
जो भी भटके ‘विजन-वन’, उसे दिखाता ‘राह’ ||
उसे चाहता है ‘निडर’, ‘विषम बीहड़ों’ बीच |
फँसे ‘भंवर’ में ‘नाव’ जब, ‘वह’ सब का ‘मल्लाह’ ||


सब पर करता ‘क़रम’ ‘वह’, मेरा ‘पिया’ ‘क़रीम’ |
सब के देखे ‘कर्म’वह, उस की तेज़ ‘निगाह’ ||
कोई कितना ‘दीन’ हो, या कितना ही ‘हीन’ |
ध्यान करे उस ‘पिया’ का, बढ़ जाता ‘उत्साह’ ||
“प्रसून” मेरे ‘पिया’ को, प्यार से ले जो टेर |
आ कर ‘आड़े वक्त’ में, थामे ‘उस’ की ‘बाँह’ ||


 
(घ)बंधे न मेरा मीत |
==============   

मेरा ‘पिया’ ‘अभेद’ है, बाँटे सब को ‘प्यार’ |
केवल मेरा ही नहीं, वह सब का है ‘यार’ ||
‘वह’ तो ‘परम स्वतन्त्र’ है, बिलकुल ‘बन्धन-हीन’ |
‘उसे’ बाँध ले, है कहाँ, है ऐसी ‘दीवार’ ??
जहाँ पुकारे जो उसे, लगा ‘ध्यान की डोर’ |
वहाँ सुने वह ‘कान’ दे, उसकी तुरत ‘पुकार’ ||


गुरुद्वारा या ‘मठ-मढ़ी’, या कोई ’दरगाह’ |
‘मन्दिर-मस्ज़िद’, गोम्फा, कोई बड़ी मज़ार ||
‘सम्प्रदाय’ या ‘धर्म’ में, बंधे न ‘मेरा मीत’ |
‘परम मुक्त’ को क़ैद कर, सके न ‘कारागार’ ||
“प्रसून”, बादल, हवा या,नील गगन की धूप |
देता सब को एक सी,हो कर सदा उदार ||


4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर    भावनात्मक अभिव्यक्ति .सार्थक प्रस्तुति . .आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय--

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (17-01-2014) को "सपनों को मत रोको" (चर्चा मंच-1495) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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