(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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इस से कम होती सदा,
‘जन-गण-सुख-समृद्धि |
अच्छी होंती है नहीं, ‘अति
जन-संख्या-वृद्धि’ ||
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लोग अधिक साधन वही, घटती औसत आय |
सुविधायें सबको मिलें, होगा कौन उपाय ||
पूर्वजों की कर रही, ‘गुणन वृद्धि’ संतान |
पायें सब फिर किस तरह, ‘पूर्त्ति के सामान’ ||
मन-चाही कैसे मिले, हमें ‘लक्ष्य
की सिद्धि’ |
अच्छी होंती है नहीं, ‘अति
जन-संख्या-वृद्धि’ ||१||
कई धर्म, कुछ जातियाँ, करते बेढब होड़ |
‘दें जन-संख्या-वृद्धि में, सब को पीछे छोड़ ||
‘आबादी की डेग’ में, आया विकट उफ़ान’ |
‘आबादी की डेग’ में, आया विकट उफ़ान’ |
अत: ‘नियन्त्रण’ में हुआ, बहुत अधिक व्यवधान |
रहे सभी की अब कहो, कैसे ‘स्थिर
बुद्धि’ |
अच्छी होंती है नहीं, ‘अति
जन-संख्या-वृद्धि’ ||२|
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कैसे पायें सभी जन, भोजन, वसन, मकान |
‘जटिल समस्या’ का करें, अब किस तरह निदान ||
होता है जब साधनों, का अत्यधिक अभाव |
जीवन में यों व्यर्थ के, बढ़ाते कई तनाव ||
ऐसे में कैसे बढ़ें,
सुज्ञान,विवेक-ऋद्धि
अच्छी होंती है नहीं, ‘अति
जन-संख्या-वृद्धि’ ||३||
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अनियंत्रित जनसँख्या ही दुःख का कारण है -सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहागीत।
जवाब देंहटाएंहमें भी प्रेरणा मिली कुछ लिखने की।
सार्थक अभिव्यक्ति ...
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