(सारे चिर्त्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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आये हैं ‘शैतान’ कुछ, बन कर ‘राम-रहीम’ |
लगे हैं ‘बैनर’ धर्म के, बाँटें ‘अधर्म-थीम’ ||
अब ‘द्रौपदियाँ’ क्या करें, कहाँ बचेगी ‘लाज’ |
जब ‘दुश्शासन’ घूमता, कहता खुद को ‘भीम’ ||
हलवाई ‘अज्ञान’ के, रचें ‘ज्ञान-मिष्ठान’ |
रच कर ‘पेड़ा’ बेचते, भीतर भरे ‘अफ़ीम’ ||
‘कड़वाहट’ हैं भर रहे, ये ‘प्रवचन के सिद्ध’ |
‘वाणी’ में ‘मिसरी’ घुली, ‘व्यवहारों में ‘नीम’ ||
‘तोते’ कुछ ‘पाखण्ड’ के, रटते ‘पाप-कुमन्त्र’ |
‘कुतर्क’ कितने कर रहे, झूठी हर ‘तरमीम’ ||
इनके ‘झाँसे’ में फँसे, भोले कई “प्रसून” |
समाज भटका ‘भ्रष्ट पथ’, पनपे ‘पाप’ असीम ||
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वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (31-12-13) को "वर्ष 2013 की अन्तिम चर्चा" (चर्चा मंच : अंक 1478) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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2013 को विदायी और 2014 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंनया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
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